Social Icons

Tuesday, March 19, 2024

नागपुर ने अनेक दुर्घटनाएँ देखी है, क्या इसमें मृत नागरिकों का दोष है ?

संध्या के समय ठाकुर साहब ने हेलमेट पहनकर सभी कागज पत्र ओके वाली दोपहिया गाड़ी नागपुर की सड़क पर चलाईकिसी अज्ञात ने ठाकुर साहब के वाहन को टक्कर मार दीठाकुर साहब जगह पर ही मर गए ! इसमें क्या ठाकुर साहब की गलती है ?



नागपुर शहर में पिछले २ महीने से हो रही 212 से भी ज्यादा सड़क दुर्घटनाओं में 73 लोगो ने जीवन गंवाया है। इसमें कुछ ही मामलों में दोषियों पर पुलिस द्वारा कार्यवाही की गईबाकी अन्य में अज्ञात व्यक्ति के नाम पर दुर्घटनाओं के मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। दुर्घटना में लिप्त व्यक्तियों की जांच कर अब तक अपराधियों पर कार्यवाही न करना पुलिस की कार्यप्रणाली पर ही शंका उत्पन्न करता है। नागपुर शहर के सर्वाधिक सुरक्षित शासकीय कार्यालयों से युक्त क्षेत्र जिला न्यायालयजिलाधिकारी कार्यालयआकाशवाणी के मार्ग पर दिनांक 18 फरवरी 2024 को संध्या के समय समाजसेवी श्री शिवबहादुर सिंह ठाकुर की दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। उनका भरा पूरा शोकाकुल  परिवार अब भी सदमे में है। महीना बीत जाने के उपरांत भी उनके वाहन को टक्कर मारनेवाली कार एवम दोपहिया वाहन बाइक की अब तक पहचान न होनापुलिस की जांच प्रणालीलेटलतीफी पर प्रश्नचिन्ह उपस्थित करता है। सात वर्ष पहले वर्ष 2016 में नागपुर शहर को केंद्र सरकार द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री देवेंद्र फडणवीस के कार्यकाल में कुल 3,303 करोड़ रुपए की लागत से स्मार्ट सिटी शहरी विकास योजना के अंतर्गत शहर में 3700 सीसीटीवी कैमरे 524 करोड़ रुपए खर्च कर लगाए गए थेजिनकी देखरेख L&T कंपनी करती हैपरंतु दुर्घटना का एक भी CCTV फुटेज प्राप्त न होना यह भी नागरिक सुरक्षा को लेकर व्यवस्था पर प्रश्न उपस्थित करता है। नागपुर शहर को 2020 में सेफ एवं स्मार्ट सिटी पुरस्कार मिला थापरंतु नागरिकों के लिए नागपुर शहर सुरक्षित नही है यह दुर्घटनाओं की संख्या को देखकर स्पष्ट होता है। दुर्घटना के कारणों की जांच करना एवं दोषियों पर कार्यवाही कर न्याय दिलाना पुलिस प्रशासन का कर्तव्य होता हैपरंतु सामान्य नागरिकों के संबंध में पुलिस प्रशासन गंभीर नहीं है। वही गडकरी जी के बेटे या फडणवीस जी की बेटी की बात होतीया उनके माता-पिता की दुर्घटना की बात होती तो शायद दिन में ही जांच होकरअपराधियों की धरपकड़ कर कार्यवाही हो जाती।  प्रशासन नागरिकों के लिए गंभीर नहीं है। समाजसेवी श्री शिवबहादुर सिंह ठाकुर जी की दुर्घटना में मृत्यु होने के कारणों का एक माह पश्चात भी पता नही चलनापुलिस की जांच पर ही सवालिया निशान लगाता है। शहर में विभिन्न जगहों पर नागपुर महानगर पालिका द्वारा ठेकेदारों के माध्यम से सीमेंट रोड के निर्माण कार्य शुरू हैउनमें से एक कार्य जिलाधिकारी कार्यालय के सामने से आकाशवाणी चौक होते हुए महाराजबाग तक शुरू हैइसके ठेकेदार ACEPL लिमिटेड कंपनी के श्री अभिषेक विजयवर्गीय हैइनकी जिम्मेदारी थी की रोड निर्माण के कार्यों में सुरक्षा नियमों का पालन कर बैरिकेड लगाकर समुचित व्यवस्था करें परंतु ठेकेदार की दोषपूर्ण निर्माण प्रणाली एवं कार्य के कारण दुर्घटना में जीवन गंवाने वाले शिवबहादुर सिंह ठाकुर जी के परिवार ने ठेकेदार कंपनी ACEPL लिमिटेड के संचालक अभिषेक विजयवर्गीय पर सदोष मनुष्यवध की कलम अंतर्गत कार्यवाही करने का निवेदन किया है। नागरिकों की सुरक्षा की दृष्टि से नागपुर शहर में पिछले महिनों में सड़क दुर्घटनाओं पर जान गंवाने वालों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि देते हुए सभी केसेस की जांच के लिए SIT विशेष जांच दल गठित करने का सरकार से पत्रकार परिषद में निवेदन किया है। बड़े बड़े विकसित शहरों में जीवन को सबसे ज्यादा महत्व प्राप्त हैजब नागरिकों का जीवन ही सुरक्षित नही होगा तो जीवन के स्तर को सुधारने के लिए निर्मित सुख सुविधासंसाधन जैसे बड़े बड़े रास्तेब्रिजमेट्रो का औचित्य ही क्या रह जायेगाकरोड़ों रुपए खर्च कर बहुत बड़ी प्लानिंग नियोजन से सीमेंट रास्ते बनाएं जाते हैवे बनाते समय नागरिकों की सुरक्षा को सर्वोच्च रखते हुए पूर्ण किए जाएजिससे नागरिकों को तकलीफ न हो। और हां दुर्घटना के उपरांत पुलिस वाले दोषी को बचाने के लिए अज्ञात न लिखे। दुर्घटना में मृतक के परिवार को यह भी स्पष्ट बता दीजिए की सड़क दुर्घटनाओं के लिए जांच पुलिस नही कर सकती हैपुलिस आयुक्त के पास भी अनेकों कार्य होते है जैसे पुलिस क्रीड़ा में शामिल होनाबड़े बड़े कार्यक्रमों में भाषण देनाकिताब लिखनाशहर में किसी प्रमुख व्यक्ति के आने पर स्वागत के लिए Line Up में हाथ जोड़कर खड़े रहना और कहना स्मार्ट शहर नागपुर में स्वागत हैबंदोबस्त में कोई कमी हो तो आदेश करें। 

 

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित रस्ता सुरक्षा समिति के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अभय सप्रे (सेवानिवृत्त) जी को भी निवेदन करते है की जनता को जनजागृति का बहाना बनाकर दोषियों को बचाने का प्रयास न करेंदुर्घटना हुई है तो कारण है, जिम्मेदार है । प्रशासन को अनुशासन की आवश्यकता हैजब भी प्रशासन ढीला रवैया अपनाता हैदुर्घटना होती है। दुर्घटना का आरोप किसी अज्ञात पर मढ़ना गैरजिम्मेदाराना हैइससे भ्रष्टाचार बढ़ता हैमासूम नागरिकों का जीवन बर्बाद हो जाता है।

 

नागपुर ने अनेक दुर्घटनाएँ देखी हैपुल गिर गयाक्या इसमें मृत नागरिकों का दोष है 

स्टार बस से दुर्घटना हुईक्या इसमें मृत नागरिकों का दोष है 

बिल्डर की बनाई हुई बिल्डिंग गिर गई क्या इसमें दबकर मरनेवाले नागरिकों का दोष है

पुलिस प्रशासन को स्पष्ट अनुशासन में रहकर नियमानुसार जांच करने का आदेशित करेंसमय के अधीन पुलिस प्रशासन जांच करेगा तो कोई चंद्रमामंगल ग्रह पर भी होगा नियमानुसार पकड़ा ही जाएगा।

 

गडकरी जी, फडणवीस जी जैसे कर्तृत्ववान व्यक्तिमत्व से प्रसिद्ध नागपुर नगरी के प्रशासनिक अधिकारियों एवं सरकारी कर्मचारियों को अनुशासन की आवश्यकता हैयह हमने स्व. शिवबहादुर सिंह ठाकुर जी की दुर्घटना में हुई दर्दनाक मृत्यु के उपरांत विभिन्न प्रशासनिक कार्यालयों में पदस्थ बैठे सरकारी अधिकारियों द्वारा नागरिकों के प्रति हो रहे दुर्व्यवहार को अनुभव कर समझा है।

 

प्रधान सेवक लिख लेने से गौरवान्वित महसूस करने वाले प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में चल रही अमृतकाल की सरकार में प्रशासन पर पकड़ नहीं होना बहुत चिंताजनक है। जब सामान्य नागरिक किसी अधिकारी (सरकारी नौकर) के सामने खड़े रहता हैउस कार्य के लिए जिसकी  सरकारी नौकर को तनख्वाह मिलती हैवहां सभी मानव अधिकारमानवीय मूल्य और नैतिकता की गठरी की पोल खुल जाती है।

 

ठाकुर जी की मृत आत्मा को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि जिनके कारण हम प्रशासनिक नौकरों की संस्कृति से अवगत हो पाएं।

 

इंसान होने का हम कर्तव्य निभाएंगे,

न्याय के लिए अन्याय नहीं सहेंगे,

फिर आवाज उठाएंगे जब तक हम मर नहीं जाएंगे!


Tuesday, September 12, 2023

शासकीय योजनेत घोटाळा करणारे बैंक अधिकारी विरोधात विदर्भ हैचरी असोसिएशन

 


  पंतप्रधान श्री नरेंद्र मोदीजींच्या सरकार मार्फत सर्वांसाठी विविध योजना राबविली जातात, शेतक-यांना, MSME लघु उद्योजकांना बैंक द्वारे विविध प्रकारचे कर्ज दिले जातात. काही वर्षा नंतर दैनिक पेपर, प्रेस माध्यमांमध्ये लोंकाना कळते कि योजनेत घोटळा झालेला आहे, घोटाळ्याची रक्कम 100 कोटी, 500 कोटी रुपयांच्या जवळपास असते. खुप वर्षानंतर त्याची चौकशी होते. ती चौकशी, कोर्टाची तारीख सुरुच राहते. पण घोटाळे होणे थांबत नाही. बैंक घोटाळ्यात बैंक अधिकारी, शाखा प्रबंधक, व मोठे बैंक अधिकारी यांचा पुर्णपणे सहभाग असतोच. महत्वाचे कि पोलिस यंत्रणा बैंक अधिकारींवर कार्यवाही लवकर करीत नाही.

 

          या संदर्भात हैचरी असोसिएशनला सदस्यांकडुन शासकीय योजने सबंधी नागपुर क्षेतातल्या राष्ट्रीयकृत बैंकेचे बैंक अधिकारी तर्फे दुर्व्यव्हारची मानसिक त्रास झाल्याची अनेक तक्रारी प्राप्त झाल्या आहेतसदस्यांमध्ये बैंक मैनेजरांच्या, बैंक अधिकारीच्या दुर्व्यव्हार बद्दल तीव्र संताप रोष निर्माण झालेला आहे. यावर मागील महिन्यात हैचरी असोसिएशनच्या सर्व सदस्य, पदाधिकारीनी बैंकाच्या दुर्व्यव्हारा विरोधात निर्दशन करुन आंदोलन सुद्धा केलेले आहे. देशाचे वित्तमंत्री व वित्त विभागांनाही प्रत्यक्ष निवेदन देऊन ही झाले पण हे बैंक मोठे वरिष्ठ बैंक अधिकारी आपल्या भ्रष्ट बैंक कर्मचारी विरोधात दंडात्मक कार्यवाही करित नाहीत. शासकीय योजनेच्या अमलबजावणीत कसुर करणा-या बैंक अधिकारीवर ही गुन्हे दाखल करुन कार्यवाही करावी. केंद्रिय वित्त राज्यमंत्री डाँ.श्री भागवत कराड साहेबांसोबत विदर्भ हैचरी असोसिएशन चे अध्यक्ष नितीन पानतावणे यांची बैठक नई दिल्ली येथे जुलै महिन्यात झाली. पंजाब नेशनल बैंक मानकापुर (नागपुर) येथिल बैंक शाखा प्रबंधक सी.पी करवाडे व बैंक अधिकारी राहुल गि-हे कडुन हैचरी उद्योजकांना अरेरावी भाषा वापरुन मानसिक व शाब्दिक त्रास देण्यात आले, अश्या बेजवाबदार बैंक अधिकारींवर कार्यवाही करुन त्यांना तात्काळ नौकरीतुन बर्खास्त करण्यात यावे, बैंक मैनेजरांना व कर्मचारींना नागरिकांसोबत सन्मानाने व्यव्हार करण्याची ताकिद देण्यात यावी अश्या प्रकारचे तक्रार निवेदन बैंकेचे चेयरमन श्री अतुल गोयल जी यांना ही देण्यात आले होते. तरिही बैंकेचे वरिष्ठ अधिकारी बैंक शाखा प्रबंधक सी.पी करवाडे व बैंक अधिकारी राहुल गि-हे यांच्यावर कार्यवाही न करता पाठिशी घालत आहे हे विदर्भ हैचरी असोसिएशनच्या निर्दशात दिसुन आले. सदर अधिकारी स्थानिक मराठी तरुण उद्योजकांना उडवाउडविची कारणे सांगुन दिशाभुल करतात, व काही उद्योजकांना अश्या ढिसाढ बैंक अधिकारी कडुन अपमानास्पद वागणुक मिळालेली आहे. बैंकाच्या दुर्व्यव्हारा व गैरव्यव्हारा विरोधात संताप व्यक्त करूण पंजाब नेशनल बैंक किंग्जवे नागपुर चे मुख्य क्षेत्रिय प्रबंघक श्री चतुर्वेदी यांन विदर्भ हैचरी असोसिएशन प्रतिनिधी मंडला तर्फे निवेदन देण्यात आले. विदर्भ हैचरी असोसिएशनचे सदस्य राहुल भोरकर (वाकी), विनोद मोहोड (हिंगणा), रविशंकर रंगारी (टेकेपार भंडारा), अभिजित ठाकुर (कलमेश्वर ब्राम्हणवाडा) सोबत नागपुर एक्शन ग्रुपचे अध्यक्ष विश्वजीत सिंह उपस्थित होते व विदर्भ हैचरी असोसिएशनचे अध्यक्ष नितीन पानतावणे यांनी नागपुर पोलिस अधिक्षक हर्ष पोद्दार यांना निवेदन देऊन नागपुरातील सर्व क्षेत्रिय कार्यालय असलेल्या बैंकाकडुन शासकीय योजनेत होणा-या घोटाळे ची चौकशी करण्यास विशेष निरीक्षण टीम ची स्थापना करुन चौकशी करण्याची मागणीचे निवेदन दिले.

 

घोटाळा करण्याचे कार्य एवढ सोपं सहज नाही, फक्त लोन घेणाराच फसतो. बैंक अधिकारीच्या सहभागा शिवाय शक्यच नाही. शासकीय योजनेत भ्रष्टाचार करणारी ही बैंक अधिकारी वर्ग वर गुन्हा दाखल करण्यास पोलिसांनी कसुर करु नये. 150 शेतक-याची फसवणुक बोल्ला सारखे बिल्ले ला दुधाचा अभिषेक व तुपाचा नैवेद्य लावणारे 103 कोटी रुपयाचे भ्रष्टाचाराचे हार घालुन बैंक घोटाळ्यात रिकार्ड मध्ये नागपुराची नोंद झालेली घटनेने प्रत्येक नागपुरकराचा मान शर्मेने घालवली आहे. वरिष्ठ शिस्त प्रिय केंद्रीय मंत्री नितीन गडकरी जी, उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस जी सारखे नेतृत्व करणारे नेते मंडळीच्या नाकाखाली बैंकेच्या माध्यमाने कोटी रपयाचे आर्थिक घोटाळे होत आहेत. या बैंक अधिकारीवर कोणाचा वचक नाही तर घोटाळे थांबणार याची शक्यता राहीली नाही.


Wednesday, December 7, 2022

Growing Economic theft

 

In Indonesia, President Muhammad Suharto’s vast political and business operations flourished for thirty-two years during a reign made rich by a peculiar combination of repression, liberality, co-optation of different constituencies and mineral resources. Until he resigned unexpectedly in 1998 under the pressure of the Asian financial crisis, Suharto enjoyed enormous popular support, despite the harsh and heavy hand off his military on dissidents. A small elite group of business magnets, military officers, professional bureaucrats, and former journalists around the president’s office controlled access to petroleum resources and windfall rents from it while they managed an elaborate network of political patronage that dispensed favors to businesses and local leaders in carefully calibrated ways,

The Indonesian nation itself had been forged in 1949, not even two decades before Suharto came to power, after a small but determined armed struggle against Dutch colonial rule. It was a remarkable transition for a profoundly multicultural population spread out across an enormous archipelago of tens of thousands of islands. The newly formed country was characterized by a strong army, a politicized Islam, and centralized political power. It’s very identity was built around the motto, ‘unity in diversity’ which became the basis for a durable nationalist sentiment.

Suharto was an army officer under Sukarno, Indonesia’s first President. He came to prominence in 1965, when he led the military in a bloody purge of communist dissidents with the active support of the US government. After he formally took over the reins of government on March 11, 1966, he replaced military chiefs with loyalists, purged dissidents in the parliament, changed the educational system, positioned the military’s ruthless force to quell protests, invited foreign investors to extract the country’s rich oil and mineral resources and built a team of mostly Berkeley educated advisers to direct the regime’s economic policy. The government only gave limited voice for the opposition and was careful to distribute rewards widely to all those who participated in its formal structures, while threatening sanctions against those who opposed them.

In the course of three decades, Suharto stole as much as US $35 billion in public funds, but he also helped them economy grow sevenfold in real terms by creating enormous oil wealth that made many Indonesians rich, while carrying along a burgeoning middle class. All thought there is little evidence to show that returns to the economy were spread extensively, there is enough to inform us that money, political favors, and sweet deals were carefully dispensed to sustain a complex but tight web of military officers, legislators, advisers, political officials, and a global network of company executes, bankers and world leader. Each of these elite groups supported her through preferential deals and other forms of patronage, whose patterns were reproduced across scales all the way down to local gang leaders and thugs

The flow of information was also carefully controlled. The Indonesian press, had a glorious history of independent views dating back to the eighteen century, was mobilized to serve as a partner of the government, with editors receiving periodic telephone calls from the authorities on how to handle the news. Those papers that resisted the official line, like the newspaper Indonesia Raya, the news magazine Detik, and a few others, were banned, with some of their editors facing incarceration by the state as well as vilification by more pliant members of the forth estate, thereby breeding a culture of compliance and self-censorship.

By 1990, the Suharto family business was so big that any large project had to include one or the other of its many subgroups. It was even involved in the country’s poverty reduction efforts; the central government direct provided benefits to provinces and villages thought the “Inpres” or “Presidential Instructions” programs, which were executed at the discretion of the president and constituted a major portion of the country’s development budget. The government’s semi-authoritarian style meant that opposition was always circumscribed and co-opted by the regime, whereas any open rebellion was immediately crushed. But Suharto did not need to use violence to keep revolt in check. He relied on the elite’s fears of religious extremism and social disorder to constrain opposition, even while he pitted various factions that were loyal to him against each other.

As the epigraph suggests, Indonesian society under Suharto had somehow become distorted into bipolar stances that required radical adjustments be made to everyday life.  Either one blithely ignored the brutal police violence of the government and its suppression of human rights, or one found oneself in the extremely dangerous position of being a covert dissident, “an underground subversive”; there was no middle ground. For ordinary Indonesians, Suharto brought prosperity, for elites and the military, much more. Only those concerned with human rights and democracy were appalled at what was going on, but they too mostly kept their silence.

Throughout history, publics have been critical or uncritical partners in most political regime, often being misled into trusting their intentions and operations up with. The average person’s success or failure in life is deeply interlinked with how the economy as a whole performs, because everyone is codependent on a well-functioning “habits-forming” machine, which standardizes almost every element of human activity from education to work practice and home life.

Wednesday, July 11, 2018

मजदुर की मज़बूरी


मां है रेशम के कारखाने में
बाप मसरूफ सूती मिल में है
कोख से मां की जब से निकला है
बच्चा खोली के काले दिल में है

जब यहाँ से निकल के जाएगा
कारखानों के काम आयेगा
अपने मजबूर पेट की खातिर
भूक सरमाये की बढ़ाएगा

हाथ सोने के फूल उगलेंगे
जिस्म चांदी का धन लुटाएगा
खिड़कियाँ होंगी बैंक की रौशन
खून इसका दिए जलायेगा

यह जो नन्हा है भोला भाला है
खूनीं सरमाये का निवाला है
पूछती है यह इसकी खामोशी
कोई मुझको बचाने वाला है!



NGO एन जी ओ की समाजसेवा


भिखमंगे आये
नवयुग का मसीहा बनकर,
लोगों को अज्ञान, अशिक्षा और निर्धनता से मुक्ति दिलाने ।

अद्भुत वक्तृता, लेखनकौशल और
सांगठनिक क्षमता से लैस
स्वस्थसुदर्शनसुसंस्कृत भिखमंगे आये
हमारी बस्ती में ।

एशियाअफ्रीकालातिनी अमेरिका के
तमाम गरीबों के बीच
जिस तरह पहुंचे वे यानों और
वाहनों पर सवार,
उसी तरह आये वे हमारे बीच ।

भीख, दया, समर्पण और भय की
संस्कृति के प्रचारक
पुराने मिशनरियों से वे अलग थे,
जैसे कि उनके दाता भी भिन्न थे
अपने पूर्वजों से ।
अलग थे वे उन सर्वोदयी याचकों से भी
जिनके गांधीवादी जांघिये में
पड़ा रहता था
(
और आज भी पड़ा रहता है)
विदेशी अनुदान का नाड़ा ।

भिखमंगों ने बेरोजगार युवाओं से
कहा-तुम हमारे पास आओ,
हम तुम्हें जनता की सेवा करना सिखायेंगे,
वेतन कम देंगे
पर गुजाराभत्ता से बेहतर होगा
और उसकी भरपाई के लिए
जनता के आदमीका
ओहदा दिलायेंगे,
स्थायी नौकरी न सही,
बिना किसी जोखिम के
क्रान्तिकारी बनायेंगे,
मजबूरी के त्याग का वाजिब
मोल दिलायेंगे ।

रिटायर्ड, निराश, थके हुए क्रान्तिकारियो,
आओ, हम तुम्हें स्वर्ग का रास्ता बतायेंगे ।

वामपंथी विद्वानो, आओ
आओ सबआल्टर्न वालो,
आओ तमाम उत्तर मार्क्सवादियो,
उत्तर नारीवादियो वगैरहवगैरह
आओ, अपने ज्ञान और अनुभव से
एन.जी.ओ. दर्शन के नयेनये शस्त्र और शास्त्र रचो,”
आह्वान किया भिखमंगों ने
और जुट गये दाताएजेंसियों के लिए
नई रिपोर्ट तैयार करने में
--अज्ञात 

Tuesday, July 10, 2018

Ignited Minds Students unite to fight against evils



University of Pune students form 'Ignited Minds', a group to mobilise the youth for the cause Students from various departments of University of Pune (UoP) on Wednesday staged 'a peaceful protest against the offenders of citizens'.
These students have formed a group 'Ignited Minds'. They met at Shivaji Garden on the UoP campus.  Vishwajit Singh, an Ignited Minds member, said, "Though we are living in a civilised society, we are not sensitive to what is happening around us. There is rampant corruption, crime, illiteracy and child labour. But we prefer to neglect them owing to our routine life."
Other organisation members including Rajesh Nerkar, Santosh Chavan, Shailesh Shinde and Nitin Thorat said they have come together not to neglect such issues. They will raise voice against them.
They vowed to remain alert and raise issues plaguing society and affecting the common citizens. "We have called a meeting on November 12. We will bring together five members from each department of the university," he said.
At present, the organisation has 15 student members. The students are also working with various NGOs to support their mission.

भाषा हुआ करती है


एक भाषा हुआ करती है

जिसमें जितनी बार मैं लिखना चाहता हूं `आंसू´ से मिलता जुलता कोई शब्द
हर बार बहने लगती है रक्त की धार

एक भाषा है जिसे बोलते वैज्ञानिक और समाजविद और तीसरे दर्जे के जोकर
और हमारे समय की सम्मानित वेश्याएं और क्रांतिकारी सब शर्माते हैं
जिसके व्याकरण और हिज्जों की भयावह भूलें ही
कुलशील, वर्ग और नस्ल की श्रेष्ठता प्रमाणित करती हैं

बहुत अधिक बोली-लिखी, सुनी-पढ़ी जाती,
गाती-बजाती एक बहुत कमाऊ और बिकाऊ बड़ी भाषा
दुनिया के सबसे बदहाल और सबसे असाक्षर, सबसे गरीब और सबसे खूंख़ार,
सबसे काहिल और सबसे थके-लुटे लोगों की भाषा,
अस्सी करोड़ या नब्बे करोड़ या एक अरब भुक्खड़ों, नंगों और ग़रीब-लफंगों की जनसंख्या की भाषा,
वह भाषा जिसे वक़्त ज़रूरत तस्कर, हत्यारे, नेता, दलाल, अफसर, भंड़ुए, रंडियां और कुछ जुनूनी
नौजवान भी बोला करते हैं

वह भाषा जिसमें लिखता हुआ हर ईमानदार कवि पागल हो जाता है
आत्मघात करती हैं प्रतिभाएं
`ईश्वर´ कहते ही आने लगती है जिसमें अक्सर बारूद की गंध

जिसमें पान की पीक है, बीड़ी का धुआं, तम्बाकू का झार,
जिसमें सबसे ज्यादा छपते हैं दो कौड़ी के मंहगे लेकिन सबसे ज्यादा लोकप्रिय अखबार
सिफ़त मगर यह कि इसी में चलता है कैडबरीज, सांडे का तेल, सुजूकी, पिजा, आटा-दाल और स्वामी

जी और हाई साहित्य और सिनेमा और राजनीति का सारा बाज़ार

एक हौलनाक विभाजक रेखा के नीचे जीने वाले सत्तर करोड़ से ज्यादा लोगों के
आंसू और पसीने और खून में लिथड़ी एक भाषा
पिछली सदी का चिथड़ा हो चुका डाकिया अभी भी जिसमें बांटता है
सभ्यता के इतिहास की सबसे असभ्य और सबसे दर्दनाक चिटि्ठयां

वह भाषा जिसमें नौकरी की तलाश में भटकते हैं भूखे दरवेश
और एक किसी दिन चोरी या दंगे के जुर्म में गिरफ़्तार कर लिए जाते हैं
जिसकी लिपियां स्वीकार करने से इंकार करता है इस दुनिया का समूचा सूचना संजाल
आत्मा के सबसे उत्पीड़ित और विकल हिस्से में जहां जन्म लेते हैं शब्द
और किसी मलिन बस्ती के अथाह गूंगे कुएं में डूब जाते हैं चुपचाप
अतीत की किसी कंदरा से एक अज्ञात सूक्ति को अपनी व्याकुल थरथराहट में थामे लौटता है कोई जीनियस

और घोषित हो जाता है सार्वजनिक तौर पर पागल
नष्ट हो जाती है किसी विलक्षण गणितज्ञ की स्मृति
नक्षत्रों को शताब्दियों से निहारता कोई महान खगोलविद भविष्य भर के लिए अंधा हो जाता है
सिर्फ हमारी नींद में सुनाई देती रहती है उसकी अनंत बड़बड़ाहट...मंगल..शुक्र.. बृहस्पति...सप्त-ॠषि..अरुंधति...ध्रुव..
हम स्वप्न में डरे हुए देखते हैं टूटते उल्का-पिंडों की तरह
उस भाषा के अंतरिक्ष से
लुप्त होते चले जाते हैं एक-एक कर सारे नक्षत्र

भाषा जिसमें सिर्फ कूल्हे मटकाने और स्त्रियों को
अपनी छाती हिलाने की छूट है
जिसमें दण्डनीय है विज्ञान और अर्थशास्त्र और शासन-सत्ता से संबधित विमर्श
प्रतिबंधित हैं जिसमें ज्ञान और सूचना की प्रणालियां
वर्जित हैं विचार

वह भाषा जिसमें की गयी प्रार्थना तक
घोषित कर दी जाती है सांप्रदायिक
वही भाषा जिसमें किसी जिद में अब भी करता है तप कभी-कभी कोई शम्बूक
और उसे निशाने की जद में ले आती है हर तरह की सत्ता की ब्राह्मण-बंदूक

भाषा जिसमें उड़ते हैं वायुयानों में चापलूस
शाल ओढ़ते हैं मसखरे, चाकर टांगते हैं तमगे
जिस भाषा के अंधकार में चमकते हैं किसी अफसर या हुक्काम या किसी पंडे के सफेद दांत और
तमाम मठों पर नियुक्त होते जाते हैं बर्बर बुलडॉग

अपनी देह और आत्मा के घावों को और तो और अपने बच्चों और पत्नी तक से छुपाता
राजधानी में कोई कवि जिस भाषा के अंधकार में
दिन भर के अपमान और थोड़े से अचार के साथ
खाता है पिछले रोज की बची हुई रोटियां
और मृत्यु के बाद पारिश्रमिक भेजने वाले किसी राष्ट्रीय अखबार या मुनाफाखोर प्रकाशक के लिए
तैयार करता है एक और नयी पांडुलिपि

यह वही भाषा है जिसको इस मुल्क में हर बार कोई शरणार्थी, कोई तिजारती, कोई फिरंग
अटपटे लहजे में बोलता और जिसके व्याकरण को रौंदता
तालियों की गड़गड़ाहट के साथ दाखिल होता है इतिहास में
और बाहर सुनाई देता रहता है वर्षो तक आर्तनाद

सुनो दायोनीसियस, कान खोल कर सुनो
यह सच है कि तुम विजेता हो फिलहाल, एक अपराजेय हत्यारे
हर छठे मिनट पर तुम काट देते हो इस भाषा को बोलने वाली एक और जीभ
तुम फिलहाल मालिक हो कटी हुई जीभों, गूंगे गुलामों और दोगले एजेंटों के
विराट संग्रहालय के
तुम स्वामी हो अंतरिक्ष में तैरते कृत्रिम उपग्रहों, ध्वनि तरंगों,
संस्कृतियों और सूचनाओं
हथियारों और सरकारों के

यह सच है

लेकिन देखो,
हर पांचवें सेकंड पर इसी पृथ्वी पर जन्म लेता है एक और बच्चा
और इसी भाषा में भरता है किलकारी

और
कहता है - `मां ´ !

--- उदय प्रकाश

यह जो हल्का हल्का सरूर है


साकी की हर निगाह पे बल खा के पी गया
लहरों से खेलता हुआ लहरा के पी गया
एय रहमत-ऐ-तमाम मेरी हर खता मुआफ
मई इंतिहा-ऐ-शौक (में) से घबरा के पी गया
पीता बगैर इज़्म ये कब थी मेरी मजाल
दर-पर्देह चश्म-ऐ-यार की शय पा के पी गया

पास रहता है दूर रहता है
कोई दिल में ज़रूर रहता है
जब से देखा है उन की आंखों को
हल्का हल्का सुरूर रहता है
ऐसे रहते हैं कोई मेरे दिल में
जैसे ज़ुल्मत में नूर रहता है
अब अदम का येः हाल है हर वक्त
मस्त रहता है चूर रहता है
ये जो हल्का हल्का सरूर है
ये तेरी नज़र का कसूर है
के शराब पीना सिखा दिया
तेरे प्यार ने , तेरी चाह ने
तेरी बहकी बहकी निगाह ने
मुझे इक शराबी बना दिया

शराब कैसी (What Drink), खुमार कैसा (what Elevation)
ये सुब तुम्हारी नवाज़िशैं हैं (It is all your gift)
पिलाई है किस नज़र से तूने (How i have been made into an addict)
के मुझको अपनी ख़बर नही है (I have no awareness of Myself)
तेरी बहकी बहकी निगाह ने (Your lost looks)
मुझे इक शराबी बना दिया....
सारा जहाँ मस्त, जहाँ का निज़ाम (System) मस्त
दिन मस्त, रात मस्त, सहर (Morning) मस्त, शाम मस्त

दिल मस्त, शीशा मस्त, साबू (Cup of Wine) मस्त, जाम मस्त
है तेरी चश्म-ऐ-मस्त से हेर ख़ास-ओ-आम (Everyone) मस्त
यूँ तो साकी हर तरह की तेरे मैखाने में है
वो भी थोडी सी जो इन आंखों के पैमाने में है
सब समझता हूँ तेरी इशवा-करी (Cleverness) ऐ साकी
काम करती है नज़र नाम है पैमाने का.. बस!
तेरी बहकी बहकी निगाह ने
मुझे इक शराबी बना दिया...
तेरा प्यार है मेरी जिंदगी (My life is your love)
तेरा प्यार है मेरी बंदगी (I am enclosed in your love)
तेरा प्यार है बस मेरी जिंदगी, तेरा प्यार है बस मेरी जिंदगी
न नमाज़ आती है मुझको, न वजू आता है
सजदा कर लेता हूँ, जब सामने तू आता है
बस मेरी जिंदगी तेरा प्यार है....
मै अज़ल से बन्दा-ऐ-इश्क हूँ, मुझे ज़ोह्द-ओ-कुफ्र का ग़म नहीं (Deep down I am a lover, I am not sad for hearafter hell)
मेरे सर को डर तेरा मिल गया, मुझे अब तलाश-ऐ-हरम नही
मेरी बंदगी है वो बंदगी, जो मुकीद-ऐ-दैर-ओ-हरम (Bounded to any sacred Place) नही
मेरा इक नज़र तुम्हें देखना, बा खुदा नमाज़ से कम नही (For me to look at you is no less than Namaz)
बस मेरी जिंदगी तेरा प्यार है...
बस मेरी जिंदगी तेरा प्यार है...
तेरा नाम लूँ जुबां से, तेरे आगे सर झुका दूँ
मेरा इश्क कह रहा है, मैं तुझे खुदा बना दूँ
तेरा नाम मेरे लब पर, मेरा तज़करा है दर दर
मुझे भूल जाए दुनिया , मैं अगर तुझे भुला दूँ
मेरे दिल में बस रहे हैं, तेरे बेपनाह जलवे
न हो जिस में नूर तेरा, वो चराग ही बुझा दूँ
जो पूछा के किस तरह होती है बारिश, जबीं (Forehead) से पसीने की बूँदें गिरा दी
जो पूछा के किस तरह गिरती है बिजली, निगाहें मिलाएं मिला कर झुका दें
जो पूछा शब्-ओ-रोज़ मिलते हैं कैसे, तो चेहरे पे अपने वो जुल्फें हटा दीं
जो पूछा क नगमों में जादू है कैसा, तो मीठे तकल्लुम में बातें सुना दीं
जो अपनी तमनाओं का हाल पुछा , तो जलती हुई चंद शामें बुझा दीं
मैं कहता रह गया खता-ऐ-मोहब्बत की अच्छी सज़ा दी
मेरे दिल की दुनिया बना कर मिटा दी, अच!
मेरे बाद किसको सताओगे ,
मुझे किस तरह से मिटाओगे
कहाँ जा के तीर चलाओगे
मेरी दोस्ती की बलाएँ लो
मुझे हाथ उठा कर दुआएं दो, तुम्हें एक कातिल बना दिया
मुझे देखो खुवाहिश-ऐ-जान-ऐ-जां
मैं वोही हूँ अनवर-ऐ-निम् जान
तुम्हें इतना होश था जब कहाँ
न चलाओ इस तरह तुम ज़बान
करो मेरा शुक्रिया मेहेरबान
तुम्हें बात करना सिखा दिया...
यह जो हल्का हल्का सरूर है, यह तेरी नज़र का कसूर है
के शराब पीना सिखा दिया ।

---Abdul Hameed Adam




Popular Posts

नागपूर दंगल रिपोर्ट: भारतीय विचार मंच, नागपूर

3:11:00 PM Reporter: Vishwajeet Singh 0 Responses

    


Read more...

नागपुर ने अनेक दुर्घटनाएँ देखी है, क्या इसमें मृत नागरिकों का दोष है ?

1:05:00 PM Reporter: Vishwajeet Singh 0 Responses

संध्या के समय ठाकुर साहब ने हेलमेट पहनकर सभी कागज पत्र ओके वाली दोपहिया गाड़ी नागपुर की सड़क पर चलाईकिसी अज्ञात ने ठाकुर साहब के वाहन को टक्कर मार दीठाकुर साहब जगह पर ही मर गए ! इसमें क्या ठाकुर साहब की गलती है ?



नागपुर शहर में पिछले २ महीने से हो रही 212 से भी ज्यादा सड़क दुर्घटनाओं में 73 लोगो ने जीवन गंवाया है। इसमें कुछ ही मामलों में दोषियों पर पुलिस द्वारा कार्यवाही की गईबाकी अन्य में अज्ञात व्यक्ति के नाम पर दुर्घटनाओं के मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। दुर्घटना में लिप्त व्यक्तियों की जांच कर अब तक अपराधियों पर कार्यवाही न करना पुलिस की कार्यप्रणाली पर ही शंका उत्पन्न करता है। नागपुर शहर के सर्वाधिक सुरक्षित शासकीय कार्यालयों से युक्त क्षेत्र जिला न्यायालयजिलाधिकारी कार्यालयआकाशवाणी के मार्ग पर दिनांक 18 फरवरी 2024 को संध्या के समय समाजसेवी श्री शिवबहादुर सिंह ठाकुर की दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। उनका भरा पूरा शोकाकुल  परिवार अब भी सदमे में है। महीना बीत जाने के उपरांत भी उनके वाहन को टक्कर मारनेवाली कार एवम दोपहिया वाहन बाइक की अब तक पहचान न होनापुलिस की जांच प्रणालीलेटलतीफी पर प्रश्नचिन्ह उपस्थित करता है। सात वर्ष पहले वर्ष 2016 में नागपुर शहर को केंद्र सरकार द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री देवेंद्र फडणवीस के कार्यकाल में कुल 3,303 करोड़ रुपए की लागत से स्मार्ट सिटी शहरी विकास योजना के अंतर्गत शहर में 3700 सीसीटीवी कैमरे 524 करोड़ रुपए खर्च कर लगाए गए थेजिनकी देखरेख L&T कंपनी करती हैपरंतु दुर्घटना का एक भी CCTV फुटेज प्राप्त न होना यह भी नागरिक सुरक्षा को लेकर व्यवस्था पर प्रश्न उपस्थित करता है। नागपुर शहर को 2020 में सेफ एवं स्मार्ट सिटी पुरस्कार मिला थापरंतु नागरिकों के लिए नागपुर शहर सुरक्षित नही है यह दुर्घटनाओं की संख्या को देखकर स्पष्ट होता है। दुर्घटना के कारणों की जांच करना एवं दोषियों पर कार्यवाही कर न्याय दिलाना पुलिस प्रशासन का कर्तव्य होता हैपरंतु सामान्य नागरिकों के संबंध में पुलिस प्रशासन गंभीर नहीं है। वही गडकरी जी के बेटे या फडणवीस जी की बेटी की बात होतीया उनके माता-पिता की दुर्घटना की बात होती तो शायद दिन में ही जांच होकरअपराधियों की धरपकड़ कर कार्यवाही हो जाती।  प्रशासन नागरिकों के लिए गंभीर नहीं है। समाजसेवी श्री शिवबहादुर सिंह ठाकुर जी की दुर्घटना में मृत्यु होने के कारणों का एक माह पश्चात भी पता नही चलनापुलिस की जांच पर ही सवालिया निशान लगाता है। शहर में विभिन्न जगहों पर नागपुर महानगर पालिका द्वारा ठेकेदारों के माध्यम से सीमेंट रोड के निर्माण कार्य शुरू हैउनमें से एक कार्य जिलाधिकारी कार्यालय के सामने से आकाशवाणी चौक होते हुए महाराजबाग तक शुरू हैइसके ठेकेदार ACEPL लिमिटेड कंपनी के श्री अभिषेक विजयवर्गीय हैइनकी जिम्मेदारी थी की रोड निर्माण के कार्यों में सुरक्षा नियमों का पालन कर बैरिकेड लगाकर समुचित व्यवस्था करें परंतु ठेकेदार की दोषपूर्ण निर्माण प्रणाली एवं कार्य के कारण दुर्घटना में जीवन गंवाने वाले शिवबहादुर सिंह ठाकुर जी के परिवार ने ठेकेदार कंपनी ACEPL लिमिटेड के संचालक अभिषेक विजयवर्गीय पर सदोष मनुष्यवध की कलम अंतर्गत कार्यवाही करने का निवेदन किया है। नागरिकों की सुरक्षा की दृष्टि से नागपुर शहर में पिछले महिनों में सड़क दुर्घटनाओं पर जान गंवाने वालों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि देते हुए सभी केसेस की जांच के लिए SIT विशेष जांच दल गठित करने का सरकार से पत्रकार परिषद में निवेदन किया है। बड़े बड़े विकसित शहरों में जीवन को सबसे ज्यादा महत्व प्राप्त हैजब नागरिकों का जीवन ही सुरक्षित नही होगा तो जीवन के स्तर को सुधारने के लिए निर्मित सुख सुविधासंसाधन जैसे बड़े बड़े रास्तेब्रिजमेट्रो का औचित्य ही क्या रह जायेगाकरोड़ों रुपए खर्च कर बहुत बड़ी प्लानिंग नियोजन से सीमेंट रास्ते बनाएं जाते हैवे बनाते समय नागरिकों की सुरक्षा को सर्वोच्च रखते हुए पूर्ण किए जाएजिससे नागरिकों को तकलीफ न हो। और हां दुर्घटना के उपरांत पुलिस वाले दोषी को बचाने के लिए अज्ञात न लिखे। दुर्घटना में मृतक के परिवार को यह भी स्पष्ट बता दीजिए की सड़क दुर्घटनाओं के लिए जांच पुलिस नही कर सकती हैपुलिस आयुक्त के पास भी अनेकों कार्य होते है जैसे पुलिस क्रीड़ा में शामिल होनाबड़े बड़े कार्यक्रमों में भाषण देनाकिताब लिखनाशहर में किसी प्रमुख व्यक्ति के आने पर स्वागत के लिए Line Up में हाथ जोड़कर खड़े रहना और कहना स्मार्ट शहर नागपुर में स्वागत हैबंदोबस्त में कोई कमी हो तो आदेश करें। 

 

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित रस्ता सुरक्षा समिति के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अभय सप्रे (सेवानिवृत्त) जी को भी निवेदन करते है की जनता को जनजागृति का बहाना बनाकर दोषियों को बचाने का प्रयास न करेंदुर्घटना हुई है तो कारण है, जिम्मेदार है । प्रशासन को अनुशासन की आवश्यकता हैजब भी प्रशासन ढीला रवैया अपनाता हैदुर्घटना होती है। दुर्घटना का आरोप किसी अज्ञात पर मढ़ना गैरजिम्मेदाराना हैइससे भ्रष्टाचार बढ़ता हैमासूम नागरिकों का जीवन बर्बाद हो जाता है।

 

नागपुर ने अनेक दुर्घटनाएँ देखी हैपुल गिर गयाक्या इसमें मृत नागरिकों का दोष है 

स्टार बस से दुर्घटना हुईक्या इसमें मृत नागरिकों का दोष है 

बिल्डर की बनाई हुई बिल्डिंग गिर गई क्या इसमें दबकर मरनेवाले नागरिकों का दोष है

पुलिस प्रशासन को स्पष्ट अनुशासन में रहकर नियमानुसार जांच करने का आदेशित करेंसमय के अधीन पुलिस प्रशासन जांच करेगा तो कोई चंद्रमामंगल ग्रह पर भी होगा नियमानुसार पकड़ा ही जाएगा।

 

गडकरी जी, फडणवीस जी जैसे कर्तृत्ववान व्यक्तिमत्व से प्रसिद्ध नागपुर नगरी के प्रशासनिक अधिकारियों एवं सरकारी कर्मचारियों को अनुशासन की आवश्यकता हैयह हमने स्व. शिवबहादुर सिंह ठाकुर जी की दुर्घटना में हुई दर्दनाक मृत्यु के उपरांत विभिन्न प्रशासनिक कार्यालयों में पदस्थ बैठे सरकारी अधिकारियों द्वारा नागरिकों के प्रति हो रहे दुर्व्यवहार को अनुभव कर समझा है।

 

प्रधान सेवक लिख लेने से गौरवान्वित महसूस करने वाले प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में चल रही अमृतकाल की सरकार में प्रशासन पर पकड़ नहीं होना बहुत चिंताजनक है। जब सामान्य नागरिक किसी अधिकारी (सरकारी नौकर) के सामने खड़े रहता हैउस कार्य के लिए जिसकी  सरकारी नौकर को तनख्वाह मिलती हैवहां सभी मानव अधिकारमानवीय मूल्य और नैतिकता की गठरी की पोल खुल जाती है।

 

ठाकुर जी की मृत आत्मा को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि जिनके कारण हम प्रशासनिक नौकरों की संस्कृति से अवगत हो पाएं।

 

इंसान होने का हम कर्तव्य निभाएंगे,

न्याय के लिए अन्याय नहीं सहेंगे,

फिर आवाज उठाएंगे जब तक हम मर नहीं जाएंगे!



Read more...

शासकीय योजनेत घोटाळा करणारे बैंक अधिकारी विरोधात विदर्भ हैचरी असोसिएशन

2:35:00 PM Reporter: Vishwajeet Singh 0 Responses

 


  पंतप्रधान श्री नरेंद्र मोदीजींच्या सरकार मार्फत सर्वांसाठी विविध योजना राबविली जातात, शेतक-यांना, MSME लघु उद्योजकांना बैंक द्वारे विविध प्रकारचे कर्ज दिले जातात. काही वर्षा नंतर दैनिक पेपर, प्रेस माध्यमांमध्ये लोंकाना कळते कि योजनेत घोटळा झालेला आहे, घोटाळ्याची रक्कम 100 कोटी, 500 कोटी रुपयांच्या जवळपास असते. खुप वर्षानंतर त्याची चौकशी होते. ती चौकशी, कोर्टाची तारीख सुरुच राहते. पण घोटाळे होणे थांबत नाही. बैंक घोटाळ्यात बैंक अधिकारी, शाखा प्रबंधक, व मोठे बैंक अधिकारी यांचा पुर्णपणे सहभाग असतोच. महत्वाचे कि पोलिस यंत्रणा बैंक अधिकारींवर कार्यवाही लवकर करीत नाही.

 

          या संदर्भात हैचरी असोसिएशनला सदस्यांकडुन शासकीय योजने सबंधी नागपुर क्षेतातल्या राष्ट्रीयकृत बैंकेचे बैंक अधिकारी तर्फे दुर्व्यव्हारची मानसिक त्रास झाल्याची अनेक तक्रारी प्राप्त झाल्या आहेतसदस्यांमध्ये बैंक मैनेजरांच्या, बैंक अधिकारीच्या दुर्व्यव्हार बद्दल तीव्र संताप रोष निर्माण झालेला आहे. यावर मागील महिन्यात हैचरी असोसिएशनच्या सर्व सदस्य, पदाधिकारीनी बैंकाच्या दुर्व्यव्हारा विरोधात निर्दशन करुन आंदोलन सुद्धा केलेले आहे. देशाचे वित्तमंत्री व वित्त विभागांनाही प्रत्यक्ष निवेदन देऊन ही झाले पण हे बैंक मोठे वरिष्ठ बैंक अधिकारी आपल्या भ्रष्ट बैंक कर्मचारी विरोधात दंडात्मक कार्यवाही करित नाहीत. शासकीय योजनेच्या अमलबजावणीत कसुर करणा-या बैंक अधिकारीवर ही गुन्हे दाखल करुन कार्यवाही करावी. केंद्रिय वित्त राज्यमंत्री डाँ.श्री भागवत कराड साहेबांसोबत विदर्भ हैचरी असोसिएशन चे अध्यक्ष नितीन पानतावणे यांची बैठक नई दिल्ली येथे जुलै महिन्यात झाली. पंजाब नेशनल बैंक मानकापुर (नागपुर) येथिल बैंक शाखा प्रबंधक सी.पी करवाडे व बैंक अधिकारी राहुल गि-हे कडुन हैचरी उद्योजकांना अरेरावी भाषा वापरुन मानसिक व शाब्दिक त्रास देण्यात आले, अश्या बेजवाबदार बैंक अधिकारींवर कार्यवाही करुन त्यांना तात्काळ नौकरीतुन बर्खास्त करण्यात यावे, बैंक मैनेजरांना व कर्मचारींना नागरिकांसोबत सन्मानाने व्यव्हार करण्याची ताकिद देण्यात यावी अश्या प्रकारचे तक्रार निवेदन बैंकेचे चेयरमन श्री अतुल गोयल जी यांना ही देण्यात आले होते. तरिही बैंकेचे वरिष्ठ अधिकारी बैंक शाखा प्रबंधक सी.पी करवाडे व बैंक अधिकारी राहुल गि-हे यांच्यावर कार्यवाही न करता पाठिशी घालत आहे हे विदर्भ हैचरी असोसिएशनच्या निर्दशात दिसुन आले. सदर अधिकारी स्थानिक मराठी तरुण उद्योजकांना उडवाउडविची कारणे सांगुन दिशाभुल करतात, व काही उद्योजकांना अश्या ढिसाढ बैंक अधिकारी कडुन अपमानास्पद वागणुक मिळालेली आहे. बैंकाच्या दुर्व्यव्हारा व गैरव्यव्हारा विरोधात संताप व्यक्त करूण पंजाब नेशनल बैंक किंग्जवे नागपुर चे मुख्य क्षेत्रिय प्रबंघक श्री चतुर्वेदी यांन विदर्भ हैचरी असोसिएशन प्रतिनिधी मंडला तर्फे निवेदन देण्यात आले. विदर्भ हैचरी असोसिएशनचे सदस्य राहुल भोरकर (वाकी), विनोद मोहोड (हिंगणा), रविशंकर रंगारी (टेकेपार भंडारा), अभिजित ठाकुर (कलमेश्वर ब्राम्हणवाडा) सोबत नागपुर एक्शन ग्रुपचे अध्यक्ष विश्वजीत सिंह उपस्थित होते व विदर्भ हैचरी असोसिएशनचे अध्यक्ष नितीन पानतावणे यांनी नागपुर पोलिस अधिक्षक हर्ष पोद्दार यांना निवेदन देऊन नागपुरातील सर्व क्षेत्रिय कार्यालय असलेल्या बैंकाकडुन शासकीय योजनेत होणा-या घोटाळे ची चौकशी करण्यास विशेष निरीक्षण टीम ची स्थापना करुन चौकशी करण्याची मागणीचे निवेदन दिले.

 

घोटाळा करण्याचे कार्य एवढ सोपं सहज नाही, फक्त लोन घेणाराच फसतो. बैंक अधिकारीच्या सहभागा शिवाय शक्यच नाही. शासकीय योजनेत भ्रष्टाचार करणारी ही बैंक अधिकारी वर्ग वर गुन्हा दाखल करण्यास पोलिसांनी कसुर करु नये. 150 शेतक-याची फसवणुक बोल्ला सारखे बिल्ले ला दुधाचा अभिषेक व तुपाचा नैवेद्य लावणारे 103 कोटी रुपयाचे भ्रष्टाचाराचे हार घालुन बैंक घोटाळ्यात रिकार्ड मध्ये नागपुराची नोंद झालेली घटनेने प्रत्येक नागपुरकराचा मान शर्मेने घालवली आहे. वरिष्ठ शिस्त प्रिय केंद्रीय मंत्री नितीन गडकरी जी, उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस जी सारखे नेतृत्व करणारे नेते मंडळीच्या नाकाखाली बैंकेच्या माध्यमाने कोटी रपयाचे आर्थिक घोटाळे होत आहेत. या बैंक अधिकारीवर कोणाचा वचक नाही तर घोटाळे थांबणार याची शक्यता राहीली नाही.



Read more...

Growing Economic theft

8:09:00 PM Reporter: Vishwajeet Singh 0 Responses

 

In Indonesia, President Muhammad Suharto’s vast political and business operations flourished for thirty-two years during a reign made rich by a peculiar combination of repression, liberality, co-optation of different constituencies and mineral resources. Until he resigned unexpectedly in 1998 under the pressure of the Asian financial crisis, Suharto enjoyed enormous popular support, despite the harsh and heavy hand off his military on dissidents. A small elite group of business magnets, military officers, professional bureaucrats, and former journalists around the president’s office controlled access to petroleum resources and windfall rents from it while they managed an elaborate network of political patronage that dispensed favors to businesses and local leaders in carefully calibrated ways,

The Indonesian nation itself had been forged in 1949, not even two decades before Suharto came to power, after a small but determined armed struggle against Dutch colonial rule. It was a remarkable transition for a profoundly multicultural population spread out across an enormous archipelago of tens of thousands of islands. The newly formed country was characterized by a strong army, a politicized Islam, and centralized political power. It’s very identity was built around the motto, ‘unity in diversity’ which became the basis for a durable nationalist sentiment.

Suharto was an army officer under Sukarno, Indonesia’s first President. He came to prominence in 1965, when he led the military in a bloody purge of communist dissidents with the active support of the US government. After he formally took over the reins of government on March 11, 1966, he replaced military chiefs with loyalists, purged dissidents in the parliament, changed the educational system, positioned the military’s ruthless force to quell protests, invited foreign investors to extract the country’s rich oil and mineral resources and built a team of mostly Berkeley educated advisers to direct the regime’s economic policy. The government only gave limited voice for the opposition and was careful to distribute rewards widely to all those who participated in its formal structures, while threatening sanctions against those who opposed them.

In the course of three decades, Suharto stole as much as US $35 billion in public funds, but he also helped them economy grow sevenfold in real terms by creating enormous oil wealth that made many Indonesians rich, while carrying along a burgeoning middle class. All thought there is little evidence to show that returns to the economy were spread extensively, there is enough to inform us that money, political favors, and sweet deals were carefully dispensed to sustain a complex but tight web of military officers, legislators, advisers, political officials, and a global network of company executes, bankers and world leader. Each of these elite groups supported her through preferential deals and other forms of patronage, whose patterns were reproduced across scales all the way down to local gang leaders and thugs

The flow of information was also carefully controlled. The Indonesian press, had a glorious history of independent views dating back to the eighteen century, was mobilized to serve as a partner of the government, with editors receiving periodic telephone calls from the authorities on how to handle the news. Those papers that resisted the official line, like the newspaper Indonesia Raya, the news magazine Detik, and a few others, were banned, with some of their editors facing incarceration by the state as well as vilification by more pliant members of the forth estate, thereby breeding a culture of compliance and self-censorship.

By 1990, the Suharto family business was so big that any large project had to include one or the other of its many subgroups. It was even involved in the country’s poverty reduction efforts; the central government direct provided benefits to provinces and villages thought the “Inpres” or “Presidential Instructions” programs, which were executed at the discretion of the president and constituted a major portion of the country’s development budget. The government’s semi-authoritarian style meant that opposition was always circumscribed and co-opted by the regime, whereas any open rebellion was immediately crushed. But Suharto did not need to use violence to keep revolt in check. He relied on the elite’s fears of religious extremism and social disorder to constrain opposition, even while he pitted various factions that were loyal to him against each other.

As the epigraph suggests, Indonesian society under Suharto had somehow become distorted into bipolar stances that required radical adjustments be made to everyday life.  Either one blithely ignored the brutal police violence of the government and its suppression of human rights, or one found oneself in the extremely dangerous position of being a covert dissident, “an underground subversive”; there was no middle ground. For ordinary Indonesians, Suharto brought prosperity, for elites and the military, much more. Only those concerned with human rights and democracy were appalled at what was going on, but they too mostly kept their silence.

Throughout history, publics have been critical or uncritical partners in most political regime, often being misled into trusting their intentions and operations up with. The average person’s success or failure in life is deeply interlinked with how the economy as a whole performs, because everyone is codependent on a well-functioning “habits-forming” machine, which standardizes almost every element of human activity from education to work practice and home life.


Read more...

मजदुर की मज़बूरी

9:42:00 PM Reporter: Vishwajeet Singh 0 Responses

मां है रेशम के कारखाने में
बाप मसरूफ सूती मिल में है
कोख से मां की जब से निकला है
बच्चा खोली के काले दिल में है

जब यहाँ से निकल के जाएगा
कारखानों के काम आयेगा
अपने मजबूर पेट की खातिर
भूक सरमाये की बढ़ाएगा

हाथ सोने के फूल उगलेंगे
जिस्म चांदी का धन लुटाएगा
खिड़कियाँ होंगी बैंक की रौशन
खून इसका दिए जलायेगा

यह जो नन्हा है भोला भाला है
खूनीं सरमाये का निवाला है
पूछती है यह इसकी खामोशी
कोई मुझको बचाने वाला है!




Read more...

NGO एन जी ओ की समाजसेवा

9:35:00 PM Reporter: Vishwajeet Singh 0 Responses

भिखमंगे आये
नवयुग का मसीहा बनकर,
लोगों को अज्ञान, अशिक्षा और निर्धनता से मुक्ति दिलाने ।

अद्भुत वक्तृता, लेखनकौशल और
सांगठनिक क्षमता से लैस
स्वस्थसुदर्शनसुसंस्कृत भिखमंगे आये
हमारी बस्ती में ।

एशियाअफ्रीकालातिनी अमेरिका के
तमाम गरीबों के बीच
जिस तरह पहुंचे वे यानों और
वाहनों पर सवार,
उसी तरह आये वे हमारे बीच ।

भीख, दया, समर्पण और भय की
संस्कृति के प्रचारक
पुराने मिशनरियों से वे अलग थे,
जैसे कि उनके दाता भी भिन्न थे
अपने पूर्वजों से ।
अलग थे वे उन सर्वोदयी याचकों से भी
जिनके गांधीवादी जांघिये में
पड़ा रहता था
(
और आज भी पड़ा रहता है)
विदेशी अनुदान का नाड़ा ।

भिखमंगों ने बेरोजगार युवाओं से
कहा-तुम हमारे पास आओ,
हम तुम्हें जनता की सेवा करना सिखायेंगे,
वेतन कम देंगे
पर गुजाराभत्ता से बेहतर होगा
और उसकी भरपाई के लिए
जनता के आदमीका
ओहदा दिलायेंगे,
स्थायी नौकरी न सही,
बिना किसी जोखिम के
क्रान्तिकारी बनायेंगे,
मजबूरी के त्याग का वाजिब
मोल दिलायेंगे ।

रिटायर्ड, निराश, थके हुए क्रान्तिकारियो,
आओ, हम तुम्हें स्वर्ग का रास्ता बतायेंगे ।

वामपंथी विद्वानो, आओ
आओ सबआल्टर्न वालो,
आओ तमाम उत्तर मार्क्सवादियो,
उत्तर नारीवादियो वगैरहवगैरह
आओ, अपने ज्ञान और अनुभव से
एन.जी.ओ. दर्शन के नयेनये शस्त्र और शास्त्र रचो,”
आह्वान किया भिखमंगों ने
और जुट गये दाताएजेंसियों के लिए
नई रिपोर्ट तैयार करने में
--अज्ञात 

Read more...

Ignited Minds Students unite to fight against evils

11:54:00 PM Reporter: Vishwajeet Singh 0 Responses


University of Pune students form 'Ignited Minds', a group to mobilise the youth for the cause Students from various departments of University of Pune (UoP) on Wednesday staged 'a peaceful protest against the offenders of citizens'.
These students have formed a group 'Ignited Minds'. They met at Shivaji Garden on the UoP campus.  Vishwajit Singh, an Ignited Minds member, said, "Though we are living in a civilised society, we are not sensitive to what is happening around us. There is rampant corruption, crime, illiteracy and child labour. But we prefer to neglect them owing to our routine life."
Other organisation members including Rajesh Nerkar, Santosh Chavan, Shailesh Shinde and Nitin Thorat said they have come together not to neglect such issues. They will raise voice against them.
They vowed to remain alert and raise issues plaguing society and affecting the common citizens. "We have called a meeting on November 12. We will bring together five members from each department of the university," he said.
At present, the organisation has 15 student members. The students are also working with various NGOs to support their mission.

Read more...

भाषा हुआ करती है

10:44:00 PM Reporter: Vishwajeet Singh 0 Responses


एक भाषा हुआ करती है

जिसमें जितनी बार मैं लिखना चाहता हूं `आंसू´ से मिलता जुलता कोई शब्द
हर बार बहने लगती है रक्त की धार

एक भाषा है जिसे बोलते वैज्ञानिक और समाजविद और तीसरे दर्जे के जोकर
और हमारे समय की सम्मानित वेश्याएं और क्रांतिकारी सब शर्माते हैं
जिसके व्याकरण और हिज्जों की भयावह भूलें ही
कुलशील, वर्ग और नस्ल की श्रेष्ठता प्रमाणित करती हैं

बहुत अधिक बोली-लिखी, सुनी-पढ़ी जाती,
गाती-बजाती एक बहुत कमाऊ और बिकाऊ बड़ी भाषा
दुनिया के सबसे बदहाल और सबसे असाक्षर, सबसे गरीब और सबसे खूंख़ार,
सबसे काहिल और सबसे थके-लुटे लोगों की भाषा,
अस्सी करोड़ या नब्बे करोड़ या एक अरब भुक्खड़ों, नंगों और ग़रीब-लफंगों की जनसंख्या की भाषा,
वह भाषा जिसे वक़्त ज़रूरत तस्कर, हत्यारे, नेता, दलाल, अफसर, भंड़ुए, रंडियां और कुछ जुनूनी
नौजवान भी बोला करते हैं

वह भाषा जिसमें लिखता हुआ हर ईमानदार कवि पागल हो जाता है
आत्मघात करती हैं प्रतिभाएं
`ईश्वर´ कहते ही आने लगती है जिसमें अक्सर बारूद की गंध

जिसमें पान की पीक है, बीड़ी का धुआं, तम्बाकू का झार,
जिसमें सबसे ज्यादा छपते हैं दो कौड़ी के मंहगे लेकिन सबसे ज्यादा लोकप्रिय अखबार
सिफ़त मगर यह कि इसी में चलता है कैडबरीज, सांडे का तेल, सुजूकी, पिजा, आटा-दाल और स्वामी

जी और हाई साहित्य और सिनेमा और राजनीति का सारा बाज़ार

एक हौलनाक विभाजक रेखा के नीचे जीने वाले सत्तर करोड़ से ज्यादा लोगों के
आंसू और पसीने और खून में लिथड़ी एक भाषा
पिछली सदी का चिथड़ा हो चुका डाकिया अभी भी जिसमें बांटता है
सभ्यता के इतिहास की सबसे असभ्य और सबसे दर्दनाक चिटि्ठयां

वह भाषा जिसमें नौकरी की तलाश में भटकते हैं भूखे दरवेश
और एक किसी दिन चोरी या दंगे के जुर्म में गिरफ़्तार कर लिए जाते हैं
जिसकी लिपियां स्वीकार करने से इंकार करता है इस दुनिया का समूचा सूचना संजाल
आत्मा के सबसे उत्पीड़ित और विकल हिस्से में जहां जन्म लेते हैं शब्द
और किसी मलिन बस्ती के अथाह गूंगे कुएं में डूब जाते हैं चुपचाप
अतीत की किसी कंदरा से एक अज्ञात सूक्ति को अपनी व्याकुल थरथराहट में थामे लौटता है कोई जीनियस

और घोषित हो जाता है सार्वजनिक तौर पर पागल
नष्ट हो जाती है किसी विलक्षण गणितज्ञ की स्मृति
नक्षत्रों को शताब्दियों से निहारता कोई महान खगोलविद भविष्य भर के लिए अंधा हो जाता है
सिर्फ हमारी नींद में सुनाई देती रहती है उसकी अनंत बड़बड़ाहट...मंगल..शुक्र.. बृहस्पति...सप्त-ॠषि..अरुंधति...ध्रुव..
हम स्वप्न में डरे हुए देखते हैं टूटते उल्का-पिंडों की तरह
उस भाषा के अंतरिक्ष से
लुप्त होते चले जाते हैं एक-एक कर सारे नक्षत्र

भाषा जिसमें सिर्फ कूल्हे मटकाने और स्त्रियों को
अपनी छाती हिलाने की छूट है
जिसमें दण्डनीय है विज्ञान और अर्थशास्त्र और शासन-सत्ता से संबधित विमर्श
प्रतिबंधित हैं जिसमें ज्ञान और सूचना की प्रणालियां
वर्जित हैं विचार

वह भाषा जिसमें की गयी प्रार्थना तक
घोषित कर दी जाती है सांप्रदायिक
वही भाषा जिसमें किसी जिद में अब भी करता है तप कभी-कभी कोई शम्बूक
और उसे निशाने की जद में ले आती है हर तरह की सत्ता की ब्राह्मण-बंदूक

भाषा जिसमें उड़ते हैं वायुयानों में चापलूस
शाल ओढ़ते हैं मसखरे, चाकर टांगते हैं तमगे
जिस भाषा के अंधकार में चमकते हैं किसी अफसर या हुक्काम या किसी पंडे के सफेद दांत और
तमाम मठों पर नियुक्त होते जाते हैं बर्बर बुलडॉग

अपनी देह और आत्मा के घावों को और तो और अपने बच्चों और पत्नी तक से छुपाता
राजधानी में कोई कवि जिस भाषा के अंधकार में
दिन भर के अपमान और थोड़े से अचार के साथ
खाता है पिछले रोज की बची हुई रोटियां
और मृत्यु के बाद पारिश्रमिक भेजने वाले किसी राष्ट्रीय अखबार या मुनाफाखोर प्रकाशक के लिए
तैयार करता है एक और नयी पांडुलिपि

यह वही भाषा है जिसको इस मुल्क में हर बार कोई शरणार्थी, कोई तिजारती, कोई फिरंग
अटपटे लहजे में बोलता और जिसके व्याकरण को रौंदता
तालियों की गड़गड़ाहट के साथ दाखिल होता है इतिहास में
और बाहर सुनाई देता रहता है वर्षो तक आर्तनाद

सुनो दायोनीसियस, कान खोल कर सुनो
यह सच है कि तुम विजेता हो फिलहाल, एक अपराजेय हत्यारे
हर छठे मिनट पर तुम काट देते हो इस भाषा को बोलने वाली एक और जीभ
तुम फिलहाल मालिक हो कटी हुई जीभों, गूंगे गुलामों और दोगले एजेंटों के
विराट संग्रहालय के
तुम स्वामी हो अंतरिक्ष में तैरते कृत्रिम उपग्रहों, ध्वनि तरंगों,
संस्कृतियों और सूचनाओं
हथियारों और सरकारों के

यह सच है

लेकिन देखो,
हर पांचवें सेकंड पर इसी पृथ्वी पर जन्म लेता है एक और बच्चा
और इसी भाषा में भरता है किलकारी

और
कहता है - `मां ´ !

--- उदय प्रकाश

Read more...

यह जो हल्का हल्का सरूर है

9:10:00 PM Reporter: Vishwajeet Singh 0 Responses

साकी की हर निगाह पे बल खा के पी गया
लहरों से खेलता हुआ लहरा के पी गया
एय रहमत-ऐ-तमाम मेरी हर खता मुआफ
मई इंतिहा-ऐ-शौक (में) से घबरा के पी गया
पीता बगैर इज़्म ये कब थी मेरी मजाल
दर-पर्देह चश्म-ऐ-यार की शय पा के पी गया

पास रहता है दूर रहता है
कोई दिल में ज़रूर रहता है
जब से देखा है उन की आंखों को
हल्का हल्का सुरूर रहता है
ऐसे रहते हैं कोई मेरे दिल में
जैसे ज़ुल्मत में नूर रहता है
अब अदम का येः हाल है हर वक्त
मस्त रहता है चूर रहता है
ये जो हल्का हल्का सरूर है
ये तेरी नज़र का कसूर है
के शराब पीना सिखा दिया
तेरे प्यार ने , तेरी चाह ने
तेरी बहकी बहकी निगाह ने
मुझे इक शराबी बना दिया

शराब कैसी (What Drink), खुमार कैसा (what Elevation)
ये सुब तुम्हारी नवाज़िशैं हैं (It is all your gift)
पिलाई है किस नज़र से तूने (How i have been made into an addict)
के मुझको अपनी ख़बर नही है (I have no awareness of Myself)
तेरी बहकी बहकी निगाह ने (Your lost looks)
मुझे इक शराबी बना दिया....
सारा जहाँ मस्त, जहाँ का निज़ाम (System) मस्त
दिन मस्त, रात मस्त, सहर (Morning) मस्त, शाम मस्त

दिल मस्त, शीशा मस्त, साबू (Cup of Wine) मस्त, जाम मस्त
है तेरी चश्म-ऐ-मस्त से हेर ख़ास-ओ-आम (Everyone) मस्त
यूँ तो साकी हर तरह की तेरे मैखाने में है
वो भी थोडी सी जो इन आंखों के पैमाने में है
सब समझता हूँ तेरी इशवा-करी (Cleverness) ऐ साकी
काम करती है नज़र नाम है पैमाने का.. बस!
तेरी बहकी बहकी निगाह ने
मुझे इक शराबी बना दिया...
तेरा प्यार है मेरी जिंदगी (My life is your love)
तेरा प्यार है मेरी बंदगी (I am enclosed in your love)
तेरा प्यार है बस मेरी जिंदगी, तेरा प्यार है बस मेरी जिंदगी
न नमाज़ आती है मुझको, न वजू आता है
सजदा कर लेता हूँ, जब सामने तू आता है
बस मेरी जिंदगी तेरा प्यार है....
मै अज़ल से बन्दा-ऐ-इश्क हूँ, मुझे ज़ोह्द-ओ-कुफ्र का ग़म नहीं (Deep down I am a lover, I am not sad for hearafter hell)
मेरे सर को डर तेरा मिल गया, मुझे अब तलाश-ऐ-हरम नही
मेरी बंदगी है वो बंदगी, जो मुकीद-ऐ-दैर-ओ-हरम (Bounded to any sacred Place) नही
मेरा इक नज़र तुम्हें देखना, बा खुदा नमाज़ से कम नही (For me to look at you is no less than Namaz)
बस मेरी जिंदगी तेरा प्यार है...
बस मेरी जिंदगी तेरा प्यार है...
तेरा नाम लूँ जुबां से, तेरे आगे सर झुका दूँ
मेरा इश्क कह रहा है, मैं तुझे खुदा बना दूँ
तेरा नाम मेरे लब पर, मेरा तज़करा है दर दर
मुझे भूल जाए दुनिया , मैं अगर तुझे भुला दूँ
मेरे दिल में बस रहे हैं, तेरे बेपनाह जलवे
न हो जिस में नूर तेरा, वो चराग ही बुझा दूँ
जो पूछा के किस तरह होती है बारिश, जबीं (Forehead) से पसीने की बूँदें गिरा दी
जो पूछा के किस तरह गिरती है बिजली, निगाहें मिलाएं मिला कर झुका दें
जो पूछा शब्-ओ-रोज़ मिलते हैं कैसे, तो चेहरे पे अपने वो जुल्फें हटा दीं
जो पूछा क नगमों में जादू है कैसा, तो मीठे तकल्लुम में बातें सुना दीं
जो अपनी तमनाओं का हाल पुछा , तो जलती हुई चंद शामें बुझा दीं
मैं कहता रह गया खता-ऐ-मोहब्बत की अच्छी सज़ा दी
मेरे दिल की दुनिया बना कर मिटा दी, अच!
मेरे बाद किसको सताओगे ,
मुझे किस तरह से मिटाओगे
कहाँ जा के तीर चलाओगे
मेरी दोस्ती की बलाएँ लो
मुझे हाथ उठा कर दुआएं दो, तुम्हें एक कातिल बना दिया
मुझे देखो खुवाहिश-ऐ-जान-ऐ-जां
मैं वोही हूँ अनवर-ऐ-निम् जान
तुम्हें इतना होश था जब कहाँ
न चलाओ इस तरह तुम ज़बान
करो मेरा शुक्रिया मेहेरबान
तुम्हें बात करना सिखा दिया...
यह जो हल्का हल्का सरूर है, यह तेरी नज़र का कसूर है
के शराब पीना सिखा दिया ।

---Abdul Hameed Adam





Read more...