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Sunday, October 28, 2012

नेता सुधर जाए तो पूरा देश सुधर जाए

भारतीय राजनीति आज बहुत विषम परिस्थितियों के दौर से गुजर रही है। राजनीतिक दलों एवं राजनेताओं की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। राजनीति के क्षेत्र में गिरावट तो बहुत पहले से आ गई है, मगर यह भी नहीं कहा जा सकता है कि यह गिरावट सिर्प राजनीति के ही क्षेत्र में आई है। गिरावट तो कमोबेश सभी क्षेत्रों में आई। फर्प सिर्प इतना ही है कि किसी क्षेत्र में ज्यादा आई है तो किसी में कम, मगर एक बात सबसे महत्वपूर्ण है कि राजनीतिक दलों एवं नेताओं की यह जिम्मेदार है कि वे राष्ट्र एवं समाज को मार्गदर्शन प्रदान करे। यदि राजनीति सही दिशा में गई होती तो किसी भी क्षेत्र में गिरावट नहीं आती।

क्योंकि पूरे देश में यह आम धारणा है कि यदि नेता सुधर जाए तो पूरा देश ही सुधर जाएगा। भ्रष्टाचार देश के रग रग में घुस चुका है। ईमानदार लोगों देश में बड़ी दुर्दशा है। उन्हें ठीक से काम नहीं करने दिया जाता है। यदि कोई नेता ईमानदार है तो उसे अधिकारी भ्रष्ट बना देते हैं। यदि कोई अधिकारी ईमानदार है तो उसे नेता भ्रष्ट बना देते हैं। कुछ इसी प्रकार की धारणा आम देशवासी के मन में पनपती जा रही है। गांव, गली मोहल्ले तक में यह प्रचारित हो चुका है कि ईमानदार सिर्प वही है, जिसे मौका नहीं मिला है। यह कितने दुर्भाग्य की बात है। आम जनता की बात आती है तो यही बात कह दी जाती है कि जैसा राजा वैसी प्रजा यानी कि जैसा शासक वर्ग होगा, उसी तरह की जनता भी बनेगी। आम जनता के बारे में क्या कहा जाए, उसे अब स्वयं यह तय करना है कि कोई सुधरे चाहे या न, मगर वह अपने स्वयं सुधरेगा एवं दूसरों को भी सुधारने का काम करेगी। आज के नेता भ्रष्टाचार के संबंध में कहते हैं कि जब चुनावों में बेतहाशा पैसा खर्च होगा तो आएगा कहां, यानी चुनावों में खर्च हुआ धन किसी न किसी रूप में तो वसूल लिया जाएगा ही। प्रत्याशियों द्वारा धन खर्च करने से क्या आशय है। शायद उनका आशय यही है कि वे जनता पर पैसा खर्च करते हैं, मगर यह कैसे स्वीकार किया जा सकता है कि चुनाव में सभी लोग पैसों की डिमांड करते हैं। हो सकता है कि कुछ लोग प्रत्याशियों से पैसों की मांग करते हैं, मगर कुछ लोगों के कारण पूरी जनता को बदनाम किया जाए, यह ठीक नहीं है जबकि आम जनता की आड़ लेकर रानीतिक दल एवं नेता भ्रष्टाचार का बहाना ढूंढते हैं।

राजनेताओं पर विश्वसनीयता का खतरा तब से और अधिक पैदा हुआ है, जब से रामलीला मैदान में अन्ना हजारे ने आंदोलन किया। उस आंदोलन फिल्म अभिनेता ओमपुरी एवं टीम अन्ना की सदस्य किरन बेदी ने सांसदों के प्रति बहुत कुछ कहा। उनकी बातों से तमाम नेता काफी नाराज भी हुए थे। इसके पहले बाबा रामदेव ने भी काली धन के मुद्दे पर रामलीला मैदान में कार्यक्रम किया था। इसके बाद से तो नेताओं की आलोचना करने का एक सिलसिला सा चल पड़ा है। वर्तमान समय इंडिया अगेंस्ट करप्शन के सदस्य अरविंद केजरीवाल एवं उनके सहयोगी नताओं की पोल खोलने में लगे हैं। केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वढेरा, फिर भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी का पोल खोलने का कार्यक्रम उन्होंने बनाया। अरविंद केजरीवाल बहुत तेजी से यह साबित करने में लगे हैं, सत्ता पक्ष नख-शिण भ्रष्टाचार में ते डूबा हुआ है ही, मगर विपक्ष भी कम नहीं है। उनका आरोप है कि भारतीय जनता पार्टी ठीक ढंग से विपक्ष की भूमिका का निर्वाह नहीं कर रही है। भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आना तो चाहती है तो मगर वह कांग्रेस एवं अन्य पार्टियों के नेताओं के खिलाफ व्यक्तिगत प्रहार नहीं करना चाहती है। वे यही साबित करने में लगे हैं कि सभी दल आपस में एक हैं सबकी मिलीभगत है। वर्तमान व्यवस्था ऐसी बन गई है कि इस व्यवस्था में किसी की भी सरकार बने, थोड़े बहुत अंतरों के साथ सभी लोग वैसे ही हो हैं। अब सवाल यह उठता है कि जब सभी लोग एक ही जैसे हैं तो देश की राजनीतिक दशा और दिशा कौन तय करेगा?

अरविंद केजरीवाल को अगर यह लगता है कि वर्तमान परिस्थितियों में वे देश को अन्य राजनीतिक दलों की अपेक्षा बेहतर राजनीतिक विकल्प दे सकते हैं तो उन पर अभी से कैसे विश्वास कर लिया जाए, क्योंकि अब राजनीतिक पार्टी के साथ आएंगे। अन्ना हजारे से लेकर अरविंद केजरीवाल तक व्यवस्था परिवर्तन की बात कर रहे हैं। आखिर उनकी नजर में व्यवस्था परिवर्तन है क्या? क्या वे पूरी व्यवस्था को बदल देना चाहते हैं या फिर देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करा देना चाहते हैं। जाहिर सी बात है कि इसी व्यवस्था के अंतर्गत जो लोग देश को जोंक की तरह चूसने का काम कर रहे हैं, क्या वे इतनी आसानी से हार मान लेंगे। जहां तक मेरा विचार है कि देश से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए धीरे धीरे कदम उठाएं जाएं। एक झटके में ही सब कुछ करने से अराजकता फैलने का खतरा व्याप्त रहता है, उन्हें दूर करके आम जनता को विश्वास में लेते हुए भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप नीतियां बनाई जाएं। आम जनता की उपेक्षा पर कोई भी नीति बनाना ठीक नहीं है। व्यवस्था की खामियों को दूर कर आम जनता के लिए सुशासन का लक्ष्य स्थापित करना चाहिए।

इस देश में जो भी ईमानदार लोग हैं, उनकी पहचान कर उनको सम्मानित एवं प्रोत्साहित किया जाए। जब ईमानदार लोग सम्मानित होंगे तो अन्य लोगों को भी ईमानदारी के रास्ते पर चलने की प्रेरणा मिलेगी। सभी राजनीतिक दल घोषित रूप से अपने दल में सभी कार्यकर्ताओं को यह संदेश दे दे कि अब तक जो हो हुआ  सो हुआ। मगर अब से ईमानदारी की राह पकड़ लेनी है। वैसे भी अब देखने में आ रहा है कि राजनीतिक बिरादरी में यह चर्चा जोर पकड़ने लगी है क लूटने-खाने के दिन चले गए। इसके अतिरिक्त एक अभियान यह चलना चाहिए कि जिन्होंने भ्रष्टाचार के माध्यम से अकूत सम्पत्ति अर्जित की है, वे स्वत भ्रष्टाचार से कमाई हुई सम्पत्ति राष्ट्र को समर्पित कर दें, अन्यथा जब्त कर ली जाएगी। इस प्रकार यदि धीरे धीरे कदम  उठाए जाएंगे तो पूरी भ्रष्ट व्यवस्था सुधरती जाएगी। एक दिन ऐसा वातावरण निर्मित हो जाएगा कि राजनीति में सिर्प वही आएगा जिससे साफ सुथरी राजनीति होगी।

सभी दलों एवं सभी नेताओं के बारे में एक कामन राय बनाना भी ठीक नहीं है, क्योंकि इससे अच्छे एवं ईमानदार लोगों का दिल टूटता है। अच्छे लोगों को यदि अच्छा नहीं बोला जाएगा तो अच्छा बनने के लिए कौन प्रयास करेगा? आज भी ईमानदार एवं भ्रष्ट लोग सभी दलों में हैं। बस आवश्यकता इस बात की है कि पार्टियां ऐसे लोगों को एक रोल माडल के रूप में पेश करें। कुल मिलाकर कहने का आशय यह है कि पूरी की पूरी व्यवस्था बदलने की बजाय व्यवस्था में कमियों को दूर करने का काम किया जाए, अन्यथा अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

जनता निदान एवं उपचार चाहती है?


व्यक्तिगत व सामाजिक रूप से नैतिक मूल्यों में गिरावट आई है। नैतिक मूल्यों में अब गिरावट आएगी तो उसका असर समाज के हर क्षेत्र में देखने को मिलेगा। संसद का काम यही है कि वह नियम कानूनों के मुताबिक देश का शासन चलाए। संविधान के मुताबिक शासन-प्रशासन में देश के प्रत्येक नागरिक को समान अवसर प्राप्त हों, मगर व्यावहारिक धरातल पर क्या हो रहा है? यह एक ऐसा प्रश्न है जो आम आदमी को व्यथित करता रहता है। शासन-प्रशासन का काम है कि वह कानून का भय सबके बीच बरकरार रखे। हर किसी को इस बात का अहसास रहे कि यदि वे कोई गलत काम करेंगे तो कानून की नजरों से बच नहीं सकेंगे किन्तु वर्तमान व्यवस्था में लोगों के मन में कानून का भय नहीं है। `अंधा बांटे रेवड़ी अपनो-अपनों को दे', वाली कहावत भलीभांति चरितार्थ हो रही है। जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत समाज में खूब चरितार्थ हो रही है।
यह तो सर्वविदित है कि लोग कानून से प्रेम भय के कराण ही करते हैं। मगर कुछ लोग ऐसा दिखाने का प्रयास करते हैं जैसे वे कानून से ऊपर हों। चुनावों में प्रत्याशी जब जनता के बीच आते हैं तो दावा करते हैं कि उनका काम सिर्प गरीब, मजबूर एवं आम आदमी की सेवा करना ही रहेगा। सिर्प इतना ही नहीं वे आम आदमी को स्वर्ग में भी बैठाने की बात कहते हैं, मगर चुनाव जीतने के बाद क्या करते हैं। उसके बाद तो सबसे पहले स्वयं अपने एवं अन् परिवार के हितों के लिए सोचने लगते हैं। यह बताने की कोशिश वे कभी नहीं करते कि आखिर आम जनता के लिए स्वर्ग जैसी स्थिति कैसे उत्पन्न कर देंगे? चुनाव जीतने के बाद लोग संविधान के मुताबिक काम करने की शपथ लेते हैं, मगर अपनी शपथ का निर्वाह किस प्रकार करते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। राज्यों के पास जो पैसा आता है उससे उम्मीद की जाती है कि वह संविधान के मुताबिक खर्च करे। इसी प्रकार केंद्र सरकार से यह उम्मीद की जाती है कि वह प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग तरीके से राष्ट्र एवं समाज के हित में किए मगर देखने  में आ रहा है कि सरकार प्राकृतिक संसाधनों की बंदरबांट करने में लगी है। इस मामले में देखा जाए तो लगता है कि सभी पार्टियों का चरित्र लगभग एक जैसा हो गया है। जो लोग सत्ता में होते है, वे अपनी मर्जी से शासन चलाते हैं, जो पार्टी विपक्ष की भूमिका में होती है, वे भी अपना काम ठीक से नहीं करती है। विपक्ष में चाहे वह पार्टी कोई भी हो। हिन्दुस्तान में कानून का राज ठीक तरीके से नहीं चल पा रहा है, इसीलिए अराजकता की स्थिति पैदा हुई है। यूपीए-2 के शासन काल में जितने भी घोटाले सामने आए हैं सभी का सूत्रधार प्रधानमंत्री कार्यालय ही साबित हुआ है जबकि प्रधानमंत्री का कार्यालय न्याय का कार्यालय माना गया है। कोई मंत्री यदि गलत काम करता है तो उस पर प्रधानमंत्री की कड़ी नजर होती है, मगर यहां तो देखने में आ रहा है कि मंत्रियों पर प्रधानमंत्री का कोई नियंत्रण ही नहीं दिखता है। जब सभी कार्यों का स्रोत प्रधानमंत्री कार्यालय ही जाएगा तो बाकी लोग क्या करेंगे? भ्रष्टाचार के कारण जब जनता किसी दल की सरकार बदलती है तो आने वाली सरकार भी कमोबेश उसी रास्ते पर चलने लगती है। 
  भ्रष्टाचार देश के लिए बहुत बड़ा मुद्दा बन चुका है। जनता इसका निदान एवं उपचार चाहती है। ऐसा भी नहीं है कि घोटाले सिर्प किसी विशेष क्षेत्र के लोग कर रहे हैं बल्कि सभी क्षेत्रों में हो रहे हैं। इंडिया अगेंस्ट करप्शन के लोगों को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जब वे कोई मामला उठाते हैं तो पहले वे पूरी तरह उसकी तहकीकात कर लें। अभी अरविंद केजरीवाल एवं उनकी सहयोगी अंजलि दमानिया ने भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के खिलाफ जो आरोप लगाया है उसमें उनका अधकचरा आरोप साबित हुआ है। अभी तो ये लोग सामाजिक रूप से आंदोलन कर रहे थे तो अलग बात थी मगर जब ये लोग राजनीतिक मंच पर आकर काम करेंगे तो मुझे नहीं लगता कि ये लोग अपने मकसद में बहुत अधिक कामयाब होंगे? शायद जल्द ही अलग हो जायेंगेl राजनीतिक पार्टी बनाकर भ्रष्टाचार के खिलाफ राजनीतिक लड़ाई तो लड़ी जा सकती है किन्तु उसे सामाजिक आंदोलन का रुतबा हासिल नहीं हो सकता है। क्योंकि सामाजिक आंदोलन राजनीतिक आंदोलन से बहुत ऊपर की चीज है।
राजनीतिक पार्टी का रुख अख्तियार करते ही कांग्रेस में तमाम कमियां आनी शुरू हो गईं। सच तो यह है कि भारतीय समाज भ्रष्टाचार से इतना तंग आ चुका है क विह इसका निदान एवं उपचार चाहता है। चूंकि, भारतीय समाज बहुत गहराई से धार्मिक परंपराओं से जुड़ा हुआ है, अन्यथा जिस प्रकार के हालात है, स्थितियां काफी जटिल हो गई होतीं। व्यावहारिक दृष्टि से देखा जाए तो वर्तमान में भारतीय राजनीतिक व्यवस्था एक सड़ी लाश की तरह है। इंडिया अगेंस्ट करप्शन के लोग यदि सबकी पोल खोलना चाहते हैं तो भाजपा, कांग्रेस एवं अन्य क्षेत्रीय दलों की जो राज्य सरकारें हैं, उनके घोटालों पर प्रहार किया जा सकता है। मगर जो कुछ भी उठाएं पूरी छानबीन के आधार पर उठाएं। अन्यथा विश्वसनीयता का संकट पैदा हो सकता है। सार्वजनिक जीवन में विश्वसनीयता ही सब कुछ है

Sunday, October 14, 2012

RJ Rahoul...Its little bit different...in loving memories "Aaj Bhi Kal Bhi"

My father used to say before experiencing Radiocity's RJ Rahoul's show "Kal Bhi Aaj Bhi". I am very lucky that i was one of them to had a talk of 7 minutes with RJ Rahoul on Radiocity 91.1. In living at Nagpur city, Large number of my friends most of them in their 60's used to tune up Radio after having an evening gossip walk. My father who always fondled to hear Hindi Bollywood songs of 70s and 80s. He used to say "Gone were the days when we had only one choice to listen to music on radio which was cheap. Local radio station VIVID BHARATI. 10.00 pm to 11.00 pm. That was the only time where we could recharge whole days work. 

They were born and  brought up in a Joint family with a small rental accommodation in Pulgaon of Wardha district, when availability of good houses & money was less. with large number of mouths and bellies to feed. Their only entertain at that time they could afford was to buy a little transistor with a sharing from all brothers and hear to music. 

Being adamant lover for music, unlike my father, when i started hearing RJ Rahoul,  I started loving music and RADIO CITY 91.1 aired in the skies of orange city Nagpur. I love the songs played by RJ Rahoul very much. I have installed a car stereo system in my room as it is very compact in size. 

And I used to say " Meri Raaton ka Hamsafar and meri neendo ka saudagar RJ Rahoul"  At about 9.00 pm we all eagerly wait for RJ Rahoul, who serves us Hindi Songs from 1970 & 80 music which is pure like diamond to hear. Voice goes like "Its little bit different RJ RAHOUL" Aap Sun rahe hai Radio City ...kahi na jaaye,...kuchhi pal me RJ Rahoul..ke saath phir se Radiocity 91.1 par.

I have to patch up with my mother to allow me to hear RJ Rahol with a promise that I wont sleep in the Half way of the programs & take responsibility to switch off the radio Mid night. 
The quality and selection of songs compared to other stations is at the best.Now I never try to compare with other stations. AS most of the stations were tried to play remixes and DJ Party songs at night. 

The way he speak....I was very eager to meet him so that i can learn the way he speaks......RJ Rahoul..

He left Radiocity,,and he never discloses his real face to the people...always a sathi of every "Sukh and Dukh".. I really miss him and his voice..Now i have laptop...and even though I could not able to find his voice or recordings in internet...If anyone had a sample of his voice...please share it with me..I really need those words and the feelings, which i could hardly express.....Its little bit different RJ RAHOUL

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नेता सुधर जाए तो पूरा देश सुधर जाए

3:16:00 AM Reporter: Vishwajeet Singh 0 Responses

भारतीय राजनीति आज बहुत विषम परिस्थितियों के दौर से गुजर रही है। राजनीतिक दलों एवं राजनेताओं की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। राजनीति के क्षेत्र में गिरावट तो बहुत पहले से आ गई है, मगर यह भी नहीं कहा जा सकता है कि यह गिरावट सिर्प राजनीति के ही क्षेत्र में आई है। गिरावट तो कमोबेश सभी क्षेत्रों में आई। फर्प सिर्प इतना ही है कि किसी क्षेत्र में ज्यादा आई है तो किसी में कम, मगर एक बात सबसे महत्वपूर्ण है कि राजनीतिक दलों एवं नेताओं की यह जिम्मेदार है कि वे राष्ट्र एवं समाज को मार्गदर्शन प्रदान करे। यदि राजनीति सही दिशा में गई होती तो किसी भी क्षेत्र में गिरावट नहीं आती।

क्योंकि पूरे देश में यह आम धारणा है कि यदि नेता सुधर जाए तो पूरा देश ही सुधर जाएगा। भ्रष्टाचार देश के रग रग में घुस चुका है। ईमानदार लोगों देश में बड़ी दुर्दशा है। उन्हें ठीक से काम नहीं करने दिया जाता है। यदि कोई नेता ईमानदार है तो उसे अधिकारी भ्रष्ट बना देते हैं। यदि कोई अधिकारी ईमानदार है तो उसे नेता भ्रष्ट बना देते हैं। कुछ इसी प्रकार की धारणा आम देशवासी के मन में पनपती जा रही है। गांव, गली मोहल्ले तक में यह प्रचारित हो चुका है कि ईमानदार सिर्प वही है, जिसे मौका नहीं मिला है। यह कितने दुर्भाग्य की बात है। आम जनता की बात आती है तो यही बात कह दी जाती है कि जैसा राजा वैसी प्रजा यानी कि जैसा शासक वर्ग होगा, उसी तरह की जनता भी बनेगी। आम जनता के बारे में क्या कहा जाए, उसे अब स्वयं यह तय करना है कि कोई सुधरे चाहे या न, मगर वह अपने स्वयं सुधरेगा एवं दूसरों को भी सुधारने का काम करेगी। आज के नेता भ्रष्टाचार के संबंध में कहते हैं कि जब चुनावों में बेतहाशा पैसा खर्च होगा तो आएगा कहां, यानी चुनावों में खर्च हुआ धन किसी न किसी रूप में तो वसूल लिया जाएगा ही। प्रत्याशियों द्वारा धन खर्च करने से क्या आशय है। शायद उनका आशय यही है कि वे जनता पर पैसा खर्च करते हैं, मगर यह कैसे स्वीकार किया जा सकता है कि चुनाव में सभी लोग पैसों की डिमांड करते हैं। हो सकता है कि कुछ लोग प्रत्याशियों से पैसों की मांग करते हैं, मगर कुछ लोगों के कारण पूरी जनता को बदनाम किया जाए, यह ठीक नहीं है जबकि आम जनता की आड़ लेकर रानीतिक दल एवं नेता भ्रष्टाचार का बहाना ढूंढते हैं।

राजनेताओं पर विश्वसनीयता का खतरा तब से और अधिक पैदा हुआ है, जब से रामलीला मैदान में अन्ना हजारे ने आंदोलन किया। उस आंदोलन फिल्म अभिनेता ओमपुरी एवं टीम अन्ना की सदस्य किरन बेदी ने सांसदों के प्रति बहुत कुछ कहा। उनकी बातों से तमाम नेता काफी नाराज भी हुए थे। इसके पहले बाबा रामदेव ने भी काली धन के मुद्दे पर रामलीला मैदान में कार्यक्रम किया था। इसके बाद से तो नेताओं की आलोचना करने का एक सिलसिला सा चल पड़ा है। वर्तमान समय इंडिया अगेंस्ट करप्शन के सदस्य अरविंद केजरीवाल एवं उनके सहयोगी नताओं की पोल खोलने में लगे हैं। केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वढेरा, फिर भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी का पोल खोलने का कार्यक्रम उन्होंने बनाया। अरविंद केजरीवाल बहुत तेजी से यह साबित करने में लगे हैं, सत्ता पक्ष नख-शिण भ्रष्टाचार में ते डूबा हुआ है ही, मगर विपक्ष भी कम नहीं है। उनका आरोप है कि भारतीय जनता पार्टी ठीक ढंग से विपक्ष की भूमिका का निर्वाह नहीं कर रही है। भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आना तो चाहती है तो मगर वह कांग्रेस एवं अन्य पार्टियों के नेताओं के खिलाफ व्यक्तिगत प्रहार नहीं करना चाहती है। वे यही साबित करने में लगे हैं कि सभी दल आपस में एक हैं सबकी मिलीभगत है। वर्तमान व्यवस्था ऐसी बन गई है कि इस व्यवस्था में किसी की भी सरकार बने, थोड़े बहुत अंतरों के साथ सभी लोग वैसे ही हो हैं। अब सवाल यह उठता है कि जब सभी लोग एक ही जैसे हैं तो देश की राजनीतिक दशा और दिशा कौन तय करेगा?

अरविंद केजरीवाल को अगर यह लगता है कि वर्तमान परिस्थितियों में वे देश को अन्य राजनीतिक दलों की अपेक्षा बेहतर राजनीतिक विकल्प दे सकते हैं तो उन पर अभी से कैसे विश्वास कर लिया जाए, क्योंकि अब राजनीतिक पार्टी के साथ आएंगे। अन्ना हजारे से लेकर अरविंद केजरीवाल तक व्यवस्था परिवर्तन की बात कर रहे हैं। आखिर उनकी नजर में व्यवस्था परिवर्तन है क्या? क्या वे पूरी व्यवस्था को बदल देना चाहते हैं या फिर देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करा देना चाहते हैं। जाहिर सी बात है कि इसी व्यवस्था के अंतर्गत जो लोग देश को जोंक की तरह चूसने का काम कर रहे हैं, क्या वे इतनी आसानी से हार मान लेंगे। जहां तक मेरा विचार है कि देश से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए धीरे धीरे कदम उठाएं जाएं। एक झटके में ही सब कुछ करने से अराजकता फैलने का खतरा व्याप्त रहता है, उन्हें दूर करके आम जनता को विश्वास में लेते हुए भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप नीतियां बनाई जाएं। आम जनता की उपेक्षा पर कोई भी नीति बनाना ठीक नहीं है। व्यवस्था की खामियों को दूर कर आम जनता के लिए सुशासन का लक्ष्य स्थापित करना चाहिए।

इस देश में जो भी ईमानदार लोग हैं, उनकी पहचान कर उनको सम्मानित एवं प्रोत्साहित किया जाए। जब ईमानदार लोग सम्मानित होंगे तो अन्य लोगों को भी ईमानदारी के रास्ते पर चलने की प्रेरणा मिलेगी। सभी राजनीतिक दल घोषित रूप से अपने दल में सभी कार्यकर्ताओं को यह संदेश दे दे कि अब तक जो हो हुआ  सो हुआ। मगर अब से ईमानदारी की राह पकड़ लेनी है। वैसे भी अब देखने में आ रहा है कि राजनीतिक बिरादरी में यह चर्चा जोर पकड़ने लगी है क लूटने-खाने के दिन चले गए। इसके अतिरिक्त एक अभियान यह चलना चाहिए कि जिन्होंने भ्रष्टाचार के माध्यम से अकूत सम्पत्ति अर्जित की है, वे स्वत भ्रष्टाचार से कमाई हुई सम्पत्ति राष्ट्र को समर्पित कर दें, अन्यथा जब्त कर ली जाएगी। इस प्रकार यदि धीरे धीरे कदम  उठाए जाएंगे तो पूरी भ्रष्ट व्यवस्था सुधरती जाएगी। एक दिन ऐसा वातावरण निर्मित हो जाएगा कि राजनीति में सिर्प वही आएगा जिससे साफ सुथरी राजनीति होगी।

सभी दलों एवं सभी नेताओं के बारे में एक कामन राय बनाना भी ठीक नहीं है, क्योंकि इससे अच्छे एवं ईमानदार लोगों का दिल टूटता है। अच्छे लोगों को यदि अच्छा नहीं बोला जाएगा तो अच्छा बनने के लिए कौन प्रयास करेगा? आज भी ईमानदार एवं भ्रष्ट लोग सभी दलों में हैं। बस आवश्यकता इस बात की है कि पार्टियां ऐसे लोगों को एक रोल माडल के रूप में पेश करें। कुल मिलाकर कहने का आशय यह है कि पूरी की पूरी व्यवस्था बदलने की बजाय व्यवस्था में कमियों को दूर करने का काम किया जाए, अन्यथा अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।


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जनता निदान एवं उपचार चाहती है?

3:14:00 AM Reporter: Vishwajeet Singh 0 Responses

व्यक्तिगत व सामाजिक रूप से नैतिक मूल्यों में गिरावट आई है। नैतिक मूल्यों में अब गिरावट आएगी तो उसका असर समाज के हर क्षेत्र में देखने को मिलेगा। संसद का काम यही है कि वह नियम कानूनों के मुताबिक देश का शासन चलाए। संविधान के मुताबिक शासन-प्रशासन में देश के प्रत्येक नागरिक को समान अवसर प्राप्त हों, मगर व्यावहारिक धरातल पर क्या हो रहा है? यह एक ऐसा प्रश्न है जो आम आदमी को व्यथित करता रहता है। शासन-प्रशासन का काम है कि वह कानून का भय सबके बीच बरकरार रखे। हर किसी को इस बात का अहसास रहे कि यदि वे कोई गलत काम करेंगे तो कानून की नजरों से बच नहीं सकेंगे किन्तु वर्तमान व्यवस्था में लोगों के मन में कानून का भय नहीं है। `अंधा बांटे रेवड़ी अपनो-अपनों को दे', वाली कहावत भलीभांति चरितार्थ हो रही है। जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत समाज में खूब चरितार्थ हो रही है।
यह तो सर्वविदित है कि लोग कानून से प्रेम भय के कराण ही करते हैं। मगर कुछ लोग ऐसा दिखाने का प्रयास करते हैं जैसे वे कानून से ऊपर हों। चुनावों में प्रत्याशी जब जनता के बीच आते हैं तो दावा करते हैं कि उनका काम सिर्प गरीब, मजबूर एवं आम आदमी की सेवा करना ही रहेगा। सिर्प इतना ही नहीं वे आम आदमी को स्वर्ग में भी बैठाने की बात कहते हैं, मगर चुनाव जीतने के बाद क्या करते हैं। उसके बाद तो सबसे पहले स्वयं अपने एवं अन् परिवार के हितों के लिए सोचने लगते हैं। यह बताने की कोशिश वे कभी नहीं करते कि आखिर आम जनता के लिए स्वर्ग जैसी स्थिति कैसे उत्पन्न कर देंगे? चुनाव जीतने के बाद लोग संविधान के मुताबिक काम करने की शपथ लेते हैं, मगर अपनी शपथ का निर्वाह किस प्रकार करते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। राज्यों के पास जो पैसा आता है उससे उम्मीद की जाती है कि वह संविधान के मुताबिक खर्च करे। इसी प्रकार केंद्र सरकार से यह उम्मीद की जाती है कि वह प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग तरीके से राष्ट्र एवं समाज के हित में किए मगर देखने  में आ रहा है कि सरकार प्राकृतिक संसाधनों की बंदरबांट करने में लगी है। इस मामले में देखा जाए तो लगता है कि सभी पार्टियों का चरित्र लगभग एक जैसा हो गया है। जो लोग सत्ता में होते है, वे अपनी मर्जी से शासन चलाते हैं, जो पार्टी विपक्ष की भूमिका में होती है, वे भी अपना काम ठीक से नहीं करती है। विपक्ष में चाहे वह पार्टी कोई भी हो। हिन्दुस्तान में कानून का राज ठीक तरीके से नहीं चल पा रहा है, इसीलिए अराजकता की स्थिति पैदा हुई है। यूपीए-2 के शासन काल में जितने भी घोटाले सामने आए हैं सभी का सूत्रधार प्रधानमंत्री कार्यालय ही साबित हुआ है जबकि प्रधानमंत्री का कार्यालय न्याय का कार्यालय माना गया है। कोई मंत्री यदि गलत काम करता है तो उस पर प्रधानमंत्री की कड़ी नजर होती है, मगर यहां तो देखने में आ रहा है कि मंत्रियों पर प्रधानमंत्री का कोई नियंत्रण ही नहीं दिखता है। जब सभी कार्यों का स्रोत प्रधानमंत्री कार्यालय ही जाएगा तो बाकी लोग क्या करेंगे? भ्रष्टाचार के कारण जब जनता किसी दल की सरकार बदलती है तो आने वाली सरकार भी कमोबेश उसी रास्ते पर चलने लगती है। 
  भ्रष्टाचार देश के लिए बहुत बड़ा मुद्दा बन चुका है। जनता इसका निदान एवं उपचार चाहती है। ऐसा भी नहीं है कि घोटाले सिर्प किसी विशेष क्षेत्र के लोग कर रहे हैं बल्कि सभी क्षेत्रों में हो रहे हैं। इंडिया अगेंस्ट करप्शन के लोगों को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जब वे कोई मामला उठाते हैं तो पहले वे पूरी तरह उसकी तहकीकात कर लें। अभी अरविंद केजरीवाल एवं उनकी सहयोगी अंजलि दमानिया ने भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के खिलाफ जो आरोप लगाया है उसमें उनका अधकचरा आरोप साबित हुआ है। अभी तो ये लोग सामाजिक रूप से आंदोलन कर रहे थे तो अलग बात थी मगर जब ये लोग राजनीतिक मंच पर आकर काम करेंगे तो मुझे नहीं लगता कि ये लोग अपने मकसद में बहुत अधिक कामयाब होंगे? शायद जल्द ही अलग हो जायेंगेl राजनीतिक पार्टी बनाकर भ्रष्टाचार के खिलाफ राजनीतिक लड़ाई तो लड़ी जा सकती है किन्तु उसे सामाजिक आंदोलन का रुतबा हासिल नहीं हो सकता है। क्योंकि सामाजिक आंदोलन राजनीतिक आंदोलन से बहुत ऊपर की चीज है।
राजनीतिक पार्टी का रुख अख्तियार करते ही कांग्रेस में तमाम कमियां आनी शुरू हो गईं। सच तो यह है कि भारतीय समाज भ्रष्टाचार से इतना तंग आ चुका है क विह इसका निदान एवं उपचार चाहता है। चूंकि, भारतीय समाज बहुत गहराई से धार्मिक परंपराओं से जुड़ा हुआ है, अन्यथा जिस प्रकार के हालात है, स्थितियां काफी जटिल हो गई होतीं। व्यावहारिक दृष्टि से देखा जाए तो वर्तमान में भारतीय राजनीतिक व्यवस्था एक सड़ी लाश की तरह है। इंडिया अगेंस्ट करप्शन के लोग यदि सबकी पोल खोलना चाहते हैं तो भाजपा, कांग्रेस एवं अन्य क्षेत्रीय दलों की जो राज्य सरकारें हैं, उनके घोटालों पर प्रहार किया जा सकता है। मगर जो कुछ भी उठाएं पूरी छानबीन के आधार पर उठाएं। अन्यथा विश्वसनीयता का संकट पैदा हो सकता है। सार्वजनिक जीवन में विश्वसनीयता ही सब कुछ है

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RJ Rahoul...Its little bit different...in loving memories "Aaj Bhi Kal Bhi"

1:47:00 AM Reporter: Vishwajeet Singh 0 Responses

My father used to say before experiencing Radiocity's RJ Rahoul's show "Kal Bhi Aaj Bhi". I am very lucky that i was one of them to had a talk of 7 minutes with RJ Rahoul on Radiocity 91.1. In living at Nagpur city, Large number of my friends most of them in their 60's used to tune up Radio after having an evening gossip walk. My father who always fondled to hear Hindi Bollywood songs of 70s and 80s. He used to say "Gone were the days when we had only one choice to listen to music on radio which was cheap. Local radio station VIVID BHARATI. 10.00 pm to 11.00 pm. That was the only time where we could recharge whole days work. 

They were born and  brought up in a Joint family with a small rental accommodation in Pulgaon of Wardha district, when availability of good houses & money was less. with large number of mouths and bellies to feed. Their only entertain at that time they could afford was to buy a little transistor with a sharing from all brothers and hear to music. 

Being adamant lover for music, unlike my father, when i started hearing RJ Rahoul,  I started loving music and RADIO CITY 91.1 aired in the skies of orange city Nagpur. I love the songs played by RJ Rahoul very much. I have installed a car stereo system in my room as it is very compact in size. 

And I used to say " Meri Raaton ka Hamsafar and meri neendo ka saudagar RJ Rahoul"  At about 9.00 pm we all eagerly wait for RJ Rahoul, who serves us Hindi Songs from 1970 & 80 music which is pure like diamond to hear. Voice goes like "Its little bit different RJ RAHOUL" Aap Sun rahe hai Radio City ...kahi na jaaye,...kuchhi pal me RJ Rahoul..ke saath phir se Radiocity 91.1 par.

I have to patch up with my mother to allow me to hear RJ Rahol with a promise that I wont sleep in the Half way of the programs & take responsibility to switch off the radio Mid night. 
The quality and selection of songs compared to other stations is at the best.Now I never try to compare with other stations. AS most of the stations were tried to play remixes and DJ Party songs at night. 

The way he speak....I was very eager to meet him so that i can learn the way he speaks......RJ Rahoul..

He left Radiocity,,and he never discloses his real face to the people...always a sathi of every "Sukh and Dukh".. I really miss him and his voice..Now i have laptop...and even though I could not able to find his voice or recordings in internet...If anyone had a sample of his voice...please share it with me..I really need those words and the feelings, which i could hardly express.....Its little bit different RJ RAHOUL


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