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Thursday, March 11, 2010

बिखरे पत्ते

बिखरे पत्ते


इस बसंत में सखी सुना है तुमने

नीम कोंपलें फूटी थी

बढ़ते बचपन के पंखों पर

कड़वे सच की छाँव तले

खुद में पराया दर्द सा पाले

कुछ जागी कुछ सोई थी

इस बसंत में सखी सुना है तुमने

नीम कोंपलें फूटी थी

कोंपल छोटी बिटिया जैसी

चूनर में यौवन दबाए

झुकी झुकी आंखों से अपने

सपने बनाती मिटाती थी

इस बसंत में सखी सुना है तुमने

नीम कोंपलें फूटी थी

पत्ती ने फिर ओंस जनी

हीरे मोती सी सहेजे उसको

बिटिया झुलसती जेठ धूप में

दर दर पानी भटकती रही

इस बसंत में सखी सुना है तुमने

नीम कोंपलें फूटी थी

उभरे कंगूरों से सजकर

दवा हवा में घुलती रही

नीम नहीं बिटिया भी मेरी

हर दिन पतझड़ सहती रही

इस बसंत में सखी सुना है तुमने

नीम कोंपलें फूटी थी

तुम

तुम


एक ख़्वाब की नदी सी

मुझमें जो बहती हो

अलसाए दिन ढ़ोते हैं

उनींदी रातों को

मैं जानता नहीं ये क्या है

मैं सोचता नहीं ये क्यों है

हर बार तुम्हे मिटाता हूँ

हर बार तुम बन जाती हो

एक ख़्वाब की नदी सी ...

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बिखरे पत्ते

4:45:00 PM Reporter: Vishwajeet Singh 0 Responses
बिखरे पत्ते


इस बसंत में सखी सुना है तुमने

नीम कोंपलें फूटी थी

बढ़ते बचपन के पंखों पर

कड़वे सच की छाँव तले

खुद में पराया दर्द सा पाले

कुछ जागी कुछ सोई थी

इस बसंत में सखी सुना है तुमने

नीम कोंपलें फूटी थी

कोंपल छोटी बिटिया जैसी

चूनर में यौवन दबाए

झुकी झुकी आंखों से अपने

सपने बनाती मिटाती थी

इस बसंत में सखी सुना है तुमने

नीम कोंपलें फूटी थी

पत्ती ने फिर ओंस जनी

हीरे मोती सी सहेजे उसको

बिटिया झुलसती जेठ धूप में

दर दर पानी भटकती रही

इस बसंत में सखी सुना है तुमने

नीम कोंपलें फूटी थी

उभरे कंगूरों से सजकर

दवा हवा में घुलती रही

नीम नहीं बिटिया भी मेरी

हर दिन पतझड़ सहती रही

इस बसंत में सखी सुना है तुमने

नीम कोंपलें फूटी थी

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तुम

4:43:00 PM Reporter: Vishwajeet Singh 0 Responses
तुम


एक ख़्वाब की नदी सी

मुझमें जो बहती हो

अलसाए दिन ढ़ोते हैं

उनींदी रातों को

मैं जानता नहीं ये क्या है

मैं सोचता नहीं ये क्यों है

हर बार तुम्हे मिटाता हूँ

हर बार तुम बन जाती हो

एक ख़्वाब की नदी सी ...

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