Social Icons

Sunday, October 28, 2012

नेता सुधर जाए तो पूरा देश सुधर जाए

भारतीय राजनीति आज बहुत विषम परिस्थितियों के दौर से गुजर रही है। राजनीतिक दलों एवं राजनेताओं की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। राजनीति के क्षेत्र में गिरावट तो बहुत पहले से आ गई है, मगर यह भी नहीं कहा जा सकता है कि यह गिरावट सिर्प राजनीति के ही क्षेत्र में आई है। गिरावट तो कमोबेश सभी क्षेत्रों में आई। फर्प सिर्प इतना ही है कि किसी क्षेत्र में ज्यादा आई है तो किसी में कम, मगर एक बात सबसे महत्वपूर्ण है कि राजनीतिक दलों एवं नेताओं की यह जिम्मेदार है कि वे राष्ट्र एवं समाज को मार्गदर्शन प्रदान करे। यदि राजनीति सही दिशा में गई होती तो किसी भी क्षेत्र में गिरावट नहीं आती।

क्योंकि पूरे देश में यह आम धारणा है कि यदि नेता सुधर जाए तो पूरा देश ही सुधर जाएगा। भ्रष्टाचार देश के रग रग में घुस चुका है। ईमानदार लोगों देश में बड़ी दुर्दशा है। उन्हें ठीक से काम नहीं करने दिया जाता है। यदि कोई नेता ईमानदार है तो उसे अधिकारी भ्रष्ट बना देते हैं। यदि कोई अधिकारी ईमानदार है तो उसे नेता भ्रष्ट बना देते हैं। कुछ इसी प्रकार की धारणा आम देशवासी के मन में पनपती जा रही है। गांव, गली मोहल्ले तक में यह प्रचारित हो चुका है कि ईमानदार सिर्प वही है, जिसे मौका नहीं मिला है। यह कितने दुर्भाग्य की बात है। आम जनता की बात आती है तो यही बात कह दी जाती है कि जैसा राजा वैसी प्रजा यानी कि जैसा शासक वर्ग होगा, उसी तरह की जनता भी बनेगी। आम जनता के बारे में क्या कहा जाए, उसे अब स्वयं यह तय करना है कि कोई सुधरे चाहे या न, मगर वह अपने स्वयं सुधरेगा एवं दूसरों को भी सुधारने का काम करेगी। आज के नेता भ्रष्टाचार के संबंध में कहते हैं कि जब चुनावों में बेतहाशा पैसा खर्च होगा तो आएगा कहां, यानी चुनावों में खर्च हुआ धन किसी न किसी रूप में तो वसूल लिया जाएगा ही। प्रत्याशियों द्वारा धन खर्च करने से क्या आशय है। शायद उनका आशय यही है कि वे जनता पर पैसा खर्च करते हैं, मगर यह कैसे स्वीकार किया जा सकता है कि चुनाव में सभी लोग पैसों की डिमांड करते हैं। हो सकता है कि कुछ लोग प्रत्याशियों से पैसों की मांग करते हैं, मगर कुछ लोगों के कारण पूरी जनता को बदनाम किया जाए, यह ठीक नहीं है जबकि आम जनता की आड़ लेकर रानीतिक दल एवं नेता भ्रष्टाचार का बहाना ढूंढते हैं।

राजनेताओं पर विश्वसनीयता का खतरा तब से और अधिक पैदा हुआ है, जब से रामलीला मैदान में अन्ना हजारे ने आंदोलन किया। उस आंदोलन फिल्म अभिनेता ओमपुरी एवं टीम अन्ना की सदस्य किरन बेदी ने सांसदों के प्रति बहुत कुछ कहा। उनकी बातों से तमाम नेता काफी नाराज भी हुए थे। इसके पहले बाबा रामदेव ने भी काली धन के मुद्दे पर रामलीला मैदान में कार्यक्रम किया था। इसके बाद से तो नेताओं की आलोचना करने का एक सिलसिला सा चल पड़ा है। वर्तमान समय इंडिया अगेंस्ट करप्शन के सदस्य अरविंद केजरीवाल एवं उनके सहयोगी नताओं की पोल खोलने में लगे हैं। केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वढेरा, फिर भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी का पोल खोलने का कार्यक्रम उन्होंने बनाया। अरविंद केजरीवाल बहुत तेजी से यह साबित करने में लगे हैं, सत्ता पक्ष नख-शिण भ्रष्टाचार में ते डूबा हुआ है ही, मगर विपक्ष भी कम नहीं है। उनका आरोप है कि भारतीय जनता पार्टी ठीक ढंग से विपक्ष की भूमिका का निर्वाह नहीं कर रही है। भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आना तो चाहती है तो मगर वह कांग्रेस एवं अन्य पार्टियों के नेताओं के खिलाफ व्यक्तिगत प्रहार नहीं करना चाहती है। वे यही साबित करने में लगे हैं कि सभी दल आपस में एक हैं सबकी मिलीभगत है। वर्तमान व्यवस्था ऐसी बन गई है कि इस व्यवस्था में किसी की भी सरकार बने, थोड़े बहुत अंतरों के साथ सभी लोग वैसे ही हो हैं। अब सवाल यह उठता है कि जब सभी लोग एक ही जैसे हैं तो देश की राजनीतिक दशा और दिशा कौन तय करेगा?

अरविंद केजरीवाल को अगर यह लगता है कि वर्तमान परिस्थितियों में वे देश को अन्य राजनीतिक दलों की अपेक्षा बेहतर राजनीतिक विकल्प दे सकते हैं तो उन पर अभी से कैसे विश्वास कर लिया जाए, क्योंकि अब राजनीतिक पार्टी के साथ आएंगे। अन्ना हजारे से लेकर अरविंद केजरीवाल तक व्यवस्था परिवर्तन की बात कर रहे हैं। आखिर उनकी नजर में व्यवस्था परिवर्तन है क्या? क्या वे पूरी व्यवस्था को बदल देना चाहते हैं या फिर देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करा देना चाहते हैं। जाहिर सी बात है कि इसी व्यवस्था के अंतर्गत जो लोग देश को जोंक की तरह चूसने का काम कर रहे हैं, क्या वे इतनी आसानी से हार मान लेंगे। जहां तक मेरा विचार है कि देश से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए धीरे धीरे कदम उठाएं जाएं। एक झटके में ही सब कुछ करने से अराजकता फैलने का खतरा व्याप्त रहता है, उन्हें दूर करके आम जनता को विश्वास में लेते हुए भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप नीतियां बनाई जाएं। आम जनता की उपेक्षा पर कोई भी नीति बनाना ठीक नहीं है। व्यवस्था की खामियों को दूर कर आम जनता के लिए सुशासन का लक्ष्य स्थापित करना चाहिए।

इस देश में जो भी ईमानदार लोग हैं, उनकी पहचान कर उनको सम्मानित एवं प्रोत्साहित किया जाए। जब ईमानदार लोग सम्मानित होंगे तो अन्य लोगों को भी ईमानदारी के रास्ते पर चलने की प्रेरणा मिलेगी। सभी राजनीतिक दल घोषित रूप से अपने दल में सभी कार्यकर्ताओं को यह संदेश दे दे कि अब तक जो हो हुआ  सो हुआ। मगर अब से ईमानदारी की राह पकड़ लेनी है। वैसे भी अब देखने में आ रहा है कि राजनीतिक बिरादरी में यह चर्चा जोर पकड़ने लगी है क लूटने-खाने के दिन चले गए। इसके अतिरिक्त एक अभियान यह चलना चाहिए कि जिन्होंने भ्रष्टाचार के माध्यम से अकूत सम्पत्ति अर्जित की है, वे स्वत भ्रष्टाचार से कमाई हुई सम्पत्ति राष्ट्र को समर्पित कर दें, अन्यथा जब्त कर ली जाएगी। इस प्रकार यदि धीरे धीरे कदम  उठाए जाएंगे तो पूरी भ्रष्ट व्यवस्था सुधरती जाएगी। एक दिन ऐसा वातावरण निर्मित हो जाएगा कि राजनीति में सिर्प वही आएगा जिससे साफ सुथरी राजनीति होगी।

सभी दलों एवं सभी नेताओं के बारे में एक कामन राय बनाना भी ठीक नहीं है, क्योंकि इससे अच्छे एवं ईमानदार लोगों का दिल टूटता है। अच्छे लोगों को यदि अच्छा नहीं बोला जाएगा तो अच्छा बनने के लिए कौन प्रयास करेगा? आज भी ईमानदार एवं भ्रष्ट लोग सभी दलों में हैं। बस आवश्यकता इस बात की है कि पार्टियां ऐसे लोगों को एक रोल माडल के रूप में पेश करें। कुल मिलाकर कहने का आशय यह है कि पूरी की पूरी व्यवस्था बदलने की बजाय व्यवस्था में कमियों को दूर करने का काम किया जाए, अन्यथा अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts

भारतीय राजनीति आज बहुत विषम परिस्थितियों के दौर से गुजर रही है। राजनीतिक दलों एवं राजनेताओं की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। राजनीति के क्षेत्र में गिरावट तो बहुत पहले से आ गई है, मगर यह भी नहीं कहा जा सकता है कि यह गिरावट सिर्प राजनीति के ही क्षेत्र में आई है। गिरावट तो कमोबेश सभी क्षेत्रों में आई। फर्प सिर्प इतना ही है कि किसी क्षेत्र में ज्यादा आई है तो किसी में कम, मगर एक बात सबसे महत्वपूर्ण है कि राजनीतिक दलों एवं नेताओं की यह जिम्मेदार है कि वे राष्ट्र एवं समाज को मार्गदर्शन प्रदान करे। यदि राजनीति सही दिशा में गई होती तो किसी भी क्षेत्र में गिरावट नहीं आती।

क्योंकि पूरे देश में यह आम धारणा है कि यदि नेता सुधर जाए तो पूरा देश ही सुधर जाएगा। भ्रष्टाचार देश के रग रग में घुस चुका है। ईमानदार लोगों देश में बड़ी दुर्दशा है। उन्हें ठीक से काम नहीं करने दिया जाता है। यदि कोई नेता ईमानदार है तो उसे अधिकारी भ्रष्ट बना देते हैं। यदि कोई अधिकारी ईमानदार है तो उसे नेता भ्रष्ट बना देते हैं। कुछ इसी प्रकार की धारणा आम देशवासी के मन में पनपती जा रही है। गांव, गली मोहल्ले तक में यह प्रचारित हो चुका है कि ईमानदार सिर्प वही है, जिसे मौका नहीं मिला है। यह कितने दुर्भाग्य की बात है। आम जनता की बात आती है तो यही बात कह दी जाती है कि जैसा राजा वैसी प्रजा यानी कि जैसा शासक वर्ग होगा, उसी तरह की जनता भी बनेगी। आम जनता के बारे में क्या कहा जाए, उसे अब स्वयं यह तय करना है कि कोई सुधरे चाहे या न, मगर वह अपने स्वयं सुधरेगा एवं दूसरों को भी सुधारने का काम करेगी। आज के नेता भ्रष्टाचार के संबंध में कहते हैं कि जब चुनावों में बेतहाशा पैसा खर्च होगा तो आएगा कहां, यानी चुनावों में खर्च हुआ धन किसी न किसी रूप में तो वसूल लिया जाएगा ही। प्रत्याशियों द्वारा धन खर्च करने से क्या आशय है। शायद उनका आशय यही है कि वे जनता पर पैसा खर्च करते हैं, मगर यह कैसे स्वीकार किया जा सकता है कि चुनाव में सभी लोग पैसों की डिमांड करते हैं। हो सकता है कि कुछ लोग प्रत्याशियों से पैसों की मांग करते हैं, मगर कुछ लोगों के कारण पूरी जनता को बदनाम किया जाए, यह ठीक नहीं है जबकि आम जनता की आड़ लेकर रानीतिक दल एवं नेता भ्रष्टाचार का बहाना ढूंढते हैं।

राजनेताओं पर विश्वसनीयता का खतरा तब से और अधिक पैदा हुआ है, जब से रामलीला मैदान में अन्ना हजारे ने आंदोलन किया। उस आंदोलन फिल्म अभिनेता ओमपुरी एवं टीम अन्ना की सदस्य किरन बेदी ने सांसदों के प्रति बहुत कुछ कहा। उनकी बातों से तमाम नेता काफी नाराज भी हुए थे। इसके पहले बाबा रामदेव ने भी काली धन के मुद्दे पर रामलीला मैदान में कार्यक्रम किया था। इसके बाद से तो नेताओं की आलोचना करने का एक सिलसिला सा चल पड़ा है। वर्तमान समय इंडिया अगेंस्ट करप्शन के सदस्य अरविंद केजरीवाल एवं उनके सहयोगी नताओं की पोल खोलने में लगे हैं। केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वढेरा, फिर भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी का पोल खोलने का कार्यक्रम उन्होंने बनाया। अरविंद केजरीवाल बहुत तेजी से यह साबित करने में लगे हैं, सत्ता पक्ष नख-शिण भ्रष्टाचार में ते डूबा हुआ है ही, मगर विपक्ष भी कम नहीं है। उनका आरोप है कि भारतीय जनता पार्टी ठीक ढंग से विपक्ष की भूमिका का निर्वाह नहीं कर रही है। भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आना तो चाहती है तो मगर वह कांग्रेस एवं अन्य पार्टियों के नेताओं के खिलाफ व्यक्तिगत प्रहार नहीं करना चाहती है। वे यही साबित करने में लगे हैं कि सभी दल आपस में एक हैं सबकी मिलीभगत है। वर्तमान व्यवस्था ऐसी बन गई है कि इस व्यवस्था में किसी की भी सरकार बने, थोड़े बहुत अंतरों के साथ सभी लोग वैसे ही हो हैं। अब सवाल यह उठता है कि जब सभी लोग एक ही जैसे हैं तो देश की राजनीतिक दशा और दिशा कौन तय करेगा?

अरविंद केजरीवाल को अगर यह लगता है कि वर्तमान परिस्थितियों में वे देश को अन्य राजनीतिक दलों की अपेक्षा बेहतर राजनीतिक विकल्प दे सकते हैं तो उन पर अभी से कैसे विश्वास कर लिया जाए, क्योंकि अब राजनीतिक पार्टी के साथ आएंगे। अन्ना हजारे से लेकर अरविंद केजरीवाल तक व्यवस्था परिवर्तन की बात कर रहे हैं। आखिर उनकी नजर में व्यवस्था परिवर्तन है क्या? क्या वे पूरी व्यवस्था को बदल देना चाहते हैं या फिर देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करा देना चाहते हैं। जाहिर सी बात है कि इसी व्यवस्था के अंतर्गत जो लोग देश को जोंक की तरह चूसने का काम कर रहे हैं, क्या वे इतनी आसानी से हार मान लेंगे। जहां तक मेरा विचार है कि देश से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए धीरे धीरे कदम उठाएं जाएं। एक झटके में ही सब कुछ करने से अराजकता फैलने का खतरा व्याप्त रहता है, उन्हें दूर करके आम जनता को विश्वास में लेते हुए भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप नीतियां बनाई जाएं। आम जनता की उपेक्षा पर कोई भी नीति बनाना ठीक नहीं है। व्यवस्था की खामियों को दूर कर आम जनता के लिए सुशासन का लक्ष्य स्थापित करना चाहिए।

इस देश में जो भी ईमानदार लोग हैं, उनकी पहचान कर उनको सम्मानित एवं प्रोत्साहित किया जाए। जब ईमानदार लोग सम्मानित होंगे तो अन्य लोगों को भी ईमानदारी के रास्ते पर चलने की प्रेरणा मिलेगी। सभी राजनीतिक दल घोषित रूप से अपने दल में सभी कार्यकर्ताओं को यह संदेश दे दे कि अब तक जो हो हुआ  सो हुआ। मगर अब से ईमानदारी की राह पकड़ लेनी है। वैसे भी अब देखने में आ रहा है कि राजनीतिक बिरादरी में यह चर्चा जोर पकड़ने लगी है क लूटने-खाने के दिन चले गए। इसके अतिरिक्त एक अभियान यह चलना चाहिए कि जिन्होंने भ्रष्टाचार के माध्यम से अकूत सम्पत्ति अर्जित की है, वे स्वत भ्रष्टाचार से कमाई हुई सम्पत्ति राष्ट्र को समर्पित कर दें, अन्यथा जब्त कर ली जाएगी। इस प्रकार यदि धीरे धीरे कदम  उठाए जाएंगे तो पूरी भ्रष्ट व्यवस्था सुधरती जाएगी। एक दिन ऐसा वातावरण निर्मित हो जाएगा कि राजनीति में सिर्प वही आएगा जिससे साफ सुथरी राजनीति होगी।

सभी दलों एवं सभी नेताओं के बारे में एक कामन राय बनाना भी ठीक नहीं है, क्योंकि इससे अच्छे एवं ईमानदार लोगों का दिल टूटता है। अच्छे लोगों को यदि अच्छा नहीं बोला जाएगा तो अच्छा बनने के लिए कौन प्रयास करेगा? आज भी ईमानदार एवं भ्रष्ट लोग सभी दलों में हैं। बस आवश्यकता इस बात की है कि पार्टियां ऐसे लोगों को एक रोल माडल के रूप में पेश करें। कुल मिलाकर कहने का आशय यह है कि पूरी की पूरी व्यवस्था बदलने की बजाय व्यवस्था में कमियों को दूर करने का काम किया जाए, अन्यथा अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

You can leave a response, or trackback from your own site.

0 Response to " नेता सुधर जाए तो पूरा देश सुधर जाए"

Post a Comment