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Thursday, March 11, 2010

तुम

तुम


एक ख़्वाब की नदी सी

मुझमें जो बहती हो

अलसाए दिन ढ़ोते हैं

उनींदी रातों को

मैं जानता नहीं ये क्या है

मैं सोचता नहीं ये क्यों है

हर बार तुम्हे मिटाता हूँ

हर बार तुम बन जाती हो

एक ख़्वाब की नदी सी ...

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तुम

4:43:00 PM Reporter: Vishwajeet Singh 0 Responses
तुम


एक ख़्वाब की नदी सी

मुझमें जो बहती हो

अलसाए दिन ढ़ोते हैं

उनींदी रातों को

मैं जानता नहीं ये क्या है

मैं सोचता नहीं ये क्यों है

हर बार तुम्हे मिटाता हूँ

हर बार तुम बन जाती हो

एक ख़्वाब की नदी सी ...

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