एक बार शादी हो गई की आगे का जीवन सुख से निकल जाएगा ऐसा हमको लगता हैं.....
इसी प्रकार से आगे बच्चे हो गए तो ......
बढ़ा घर बन गया तो और उस घर में रहने चले गए तो.....
ऐसी अनगिनत इच्छाएँ बढती ही जाती हैं.
उस दौरान अपने बच्चे अभी बढे हुए नही ....वो बढे हो गए की सब ठीक हो जाएगा ऐसा हम मन को समझाते रहते हैं
बच्चो के वयस्क होते ही ...उनके भविष्य के सुंदर सपनों से हम अपने दिन को सजाते रहते हैं ...
बच्चे थोडा देख-रेख, कामकाज करने लायक हो गए की सब आनंद ही आनंद रहेंगा ऐसा हमे लगने लगता हैं.
अपनी पत्नी जरा अच्छे से व्यव्हार करने लगी की ....
अपने दरवाजे पर गाडी आ गई तो....
हमे इच्छानुरूप छुट्टी मिली की...
रिटायर हो गए की ....
हमारा जीवन कितने सुखो से भर जाएगा....ऐसा हम खुद अपने आप से बताते रहते हैं...
हकीकत तो यह हैं की ...आनंदित होने के लिए.. सुखी होने के लिए यह समय के अलावा दूसरा उचित समय कोई हैं ही नही.
जीवन में आव्हान तो रहने वाले हैं ही...उसे स्वीकारना और झेलते झेलते आनंदी रहने का निश्चय करना यह सही हैं नही क्या?